पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी चार चरण के मतदान के बाद एक बयान दिया कि वे केंद्र में विपक्षी गठबंधन की सरकार बनती है तो वे उस सरकार को बाहर से समर्थन देंगी। सवाल है कि चुनाव के बीच में इस तरह का बयान देने की क्या जरुरत आन पड़ी, जबकि वे कांग्रेस और लेफ्ट दोनों से लड़ कर अलग हुई हैं? क्या ममता बनर्जी को लग रहा है कि कांग्रेस और लेफ्ट मिल कर उनका वोट खराब कर रहे हैं? गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट दोनों मिल कर लड़ रहे हैं। कांग्रेस 12 और लेफ्ट मोर्चा 30 सीट पर लड़ रहा है। दो सीटों पर दोनों में दोस्ताना मुकाबला है। लेकिन जब तक केरल का चुनाव था, तब तक दोनों पार्टियां एक दूसरे से दूरी दिखा रही थीं।
केरल का मतदान खत्म होने के बाद यानी 26 अप्रैल के बाद से दोनों पार्टियां खुल कर साथ आ गई हैं। एक दूसरे के साथ पूरा सहयोग किया जा रहा है। तभी उसके बाद के दो चरण के मतदान ने ममता की चिंता बढ़ाई। ध्यान रहे पिछली बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट मोर्चा को कुल 13 फीसदी वोट आए थे। इन दोनों पार्टियों के वोट काटने से कहीं ममता को फायदा हुआ था तो कहीं नुकसान भी हुआ था। तभी वे दोनों को लेकर आशंकित हैं और इसलिए उन्होंने यह दांव चला है कि वे ‘इंडिया’ ब्लॉक के साथ ही हैं ताकि मुस्लिम मतदाताओं में कोई कंफ्यूजन न रहे और वे भाजपा को हराने के लिए तृणमूल कांग्रेस को ही वोट करें। अगर वह वोट बिखरता है तो ममता को बड़ा नुकसान होगा।