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बंगाल में टकराव बनाए रखने की रणनीति

ऐसा लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस और राज्यपाल व मुख्यमंत्री लगातार टकराव बनाए रखना चाहते हैं। राजनीतिक रूप से यह रणनीति सबसे पहले ममता बनर्जी ने इस्तेमाल की थी। जब वे कांग्रेस में थीं तब भी 24 घंटे और 365 दिन तक की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ टकराव बनाए रखती थीं। जब उन्होंने अपनी पार्टी बना ली तब टकराव तेज कर दिया। लगातार टकराव बनाए रखने की रणनीति के कारण ही वे कांग्रेस के होते हुए लेफ्ट के विकल्प के तौर पर स्थापित हुईं और आखिरकार 2011 में चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बनीं।

ऐसा लग रहा है कि उन्हीं की राजनीतिक किताब से एक पन्ना निकाल कर भाजपा भी लगातार टकराव बनाए हुए है। लेकिन राजभवन का समझ में नहीं आ रहा है कि उसे क्यों लगातार टकराव बनाए रखना है? तृणमूल कांग्रेस के दो विधायक उपचुनाव में जीते तो उनकी शपथ के मुद्दे पर क्यों टकराव होना चाहिए था? राज्यपाल ने कह दिया कि वे शपथ दिलाएंगे। उन्होंने स्पीकर को शपथ दिलाने से रोक दिया। यह बेहद गैरजरूरी विवाद था। बाद में वे पीछे हटे तो उन्होंने डिप्टी स्पीकर को शपथ दिलाने का जिम्मा दिया। परंतु ममता सरकार भी टकराव बनाए रखना चाहती है इसलिए उसने राज्यपाल के निर्देश का उल्लंघन किया और स्पीकर ने विधायकों को शपथ दिलाई। ऐसा लग रहा है कि दोनों पक्ष आपस में ही लड़ाई बनाए रखना चाहते हैं। इससे कम्युनिस्ट और कांग्रेस दोनों के लिए अवसर नहीं बन पाएगा।

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