यह बड़ा सवाल है, जिस पर कोलकाता से लेकर दिल्ली तक चर्चा होती है। सबको पता है कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी हैं। लेकिन ममता एक सीमा से आगे उनकी भूमिका नहीं बढ़ाती हैं। वे पार्टी के सांसद हैं और महासचिव हैं। लेकिन जिस तरह से देश के दूसरे प्रादेशिक क्षत्रपों ने अपने उत्तराधिकारियों को अपने जीवनकाल में ही सरकार में स्थापित किया उस तरह से ममता बनर्जी नहीं कर रही हैं। उलटे अगर कोई इस तरह की बात करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर दी जाती है। West Bengal politics
पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस के शिक्षक प्रकोष्ठ से जुड़े पदाधिकारी मणिशंकर मंडल ने अभिषेक बनर्जी की भूमिका बढ़ाने और उनको सरकार में मंत्री बनाने की मांग की तो उनको निलंबित कर दिया गया। अगर ममता बनर्जी को पार्टी की कमान अभिषेक को सौंपनी है तो उनको अभी मंत्री या उप मुख्यमंत्री बनाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी। जैसे करुणानिधि ने एमके स्टालिन और स्टालिन ने अपने बेटे उदयनिधि को सरकार में शामिल किया है या प्रकाश सिंह बादल ने सुखबीर को या के चंद्रशेखर राव ने अपने बेटे केटी रामाराव को सरकार में शामिल किया था।
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मुलायम सिंह ने अखिलेश को मुख्यमंत्री और लालू प्रसाद ने तेजस्वी को उप मुख्यमंत्री बनाया। यानी पार्टी की जिम्मेदारी के साथ साथ सरकार का अनुभव भी कराया। लेकिन ममता यह मौका अभिषेक को नहीं दे रही हैं। क्या पार्टी के अंदर नए और पुराने का विवाद बढ़ने से रोकना है या ममता को लग रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का सामना कर रहे अभिषेक को मंत्री बनाया तो परेशानी बढ़ सकती है? West Bengal politics