समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के बीच सीधी बातचीत के बाद सीटों का बंटवारा तय हुआ। सपा ने रालोद के लिए सात सीटें छोड़ी हैं। दूसरी ओर कांग्रेस के साथ बातचीत आलाकमान के स्तर पर नहीं चल रही है। कांग्रेस की ओर से पांच वरिष्ठ नेताओं वाली नेशनल अलायंस कमेटी बात कर रही है तो सपा की ओर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव बात कर रहे हैं। उनके साथ जावेद अली बैठकों में मौजूद रहते हैं। हो सकता है कि शुरुआती सहमति बनने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की अखिलेश यादव से बातचीत हो। लेकिन रालोद के लिए सात सीटें छोड़ने के बाद बड़ा सवाल है कि कांग्रेस को कितनी सीटें मिल सकती हैं?
समाजवादी पार्टी के सूत्रों के हवाले से कुछ दिन पहले खबर आई थी कि सपा राज्य की 80 में से 65 लोकसभा सीटों पर लड़ेगी। इसका मतलब था कि वह सहयोगियों के लिए 15 सीटें छोड़ रही है। अगर सपा अब भी अपनी योजना पर कायम है तो इसका मतलब है कि कांग्रेस के लिए आठ सीटें बचती हैं। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में रालोद और सपा साथ मिल कर लड़े थे और रालोद के आठ विधायक जीते थे। दूसरी ओर कांग्रेस अकेले लड़ी थी और उसके दो विधायक जीते और उसे ढाई फीसदी से भी कम वोट मिला। तभी उत्तर प्रदेश में सपा नेता कांग्रेस को रालोद के बराबर की या उससे छोटी पार्टी मान रहे हैं।
हालांकि एक खबर यह भी है कि सपा ने 65 की बजाय 60 सीटों पर लड़ने का फैसला किया है। सो, अगर वह 20 सीटें सहयोगियों को लिए छोड़ती है तो फिर कांग्रेस के खाते में 13 सीटें आ सकती हैं। हालांकि अगर पीलीभीत और सुल्तानपुर सीट वरुण और मेनका गांधी के लिए छोड़ी जाती है ऐसे में कांग्रेस के लिए 11 सीटें बचेंगी। वैसे भी जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के पास 15 से ज्यादा सीटों पर लड़ने के लिए अच्छे उम्मीदवार नहीं हैं। कांग्रेस की ओर से ज्यादा फोकस इस बात पर होगा कि उसे मजबूत सीटें मिलें। सीटों की संख्या से ज्यादा सीटों की गुणवत्ता पर कांग्रेस का ध्यान है।
बहरहाल, सपा और रालोद के बीच हुए समझौते में सीटों की जानकारी नहीं दी गई है। यह नहीं बताया गया है कि कौन कौन सी सीटें रालोद को दी गई हैं। फिर एक अनुमान है कि बागपत, मथुरा, बिजनौर, फतेहपुर सीकरी जैसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटें उसे दी गई हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि सपा ने रालोद के लिए जो सीटें छोड़ी हैं उनमें अमरोहा की भी सीट है, जहां से बसपा के कुंवर दानिश अली जीते थे। बसपा से निकाले जाने के बाद दानिश अली कांग्रेस के करीब हो गए हैं और राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से भी जुड़े हैं। वे मान रहे थे कि तालमेल में अमरोहा सीट कांग्रेस को मिल जाएगी और वे गठबंधन के उम्मीदवार होंगे। अगर उनकी सीट सपा ने रालोद को दे दी है तो कांग्रेस को ज्यादा मोलभाव करने की जरुरत होगी। हो सकता है कि ऐसा कांग्रेस पर दबाव डालने के लिए ही किया गया हो।