लोकसभा के चुनाव नतीजों से और कुछ बदला हो या नहीं बदला हो लेकिन एक बड़ा बदलाव यह हुआ है कि पार्टी का अंदरूनी विवाद खुल कर सामने आने लगा है। नेता खुलेआम झगड़ने लगे हैं या अपनी नाराजगी जाहिर करने लगे हैं। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से भाजपा की राजनीति पर सवाल उठाने और संघ के मुखपत्र में नतीजों को लेकर छपे विश्लेषण के बाद विवाद और तेज होने की संभावना है। सभवतः 10 साल के बाद पहली बार नतीजों को लेकर इस तरह के झगड़े देखने को मिल रहे हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार से लेकर महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा तक, जहां भी भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ है वहां विवाद शुरू हो गया है।
वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश को लेकर पार्टी के अंदर सवाल उठ रहे हैं लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो बड़े नेताओं का झगड़ा चर्चा में है। पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने खुल कर आरोप लगाया है कि वे भाजपा के पूर्व विधायक संगीत सोम की वजह से मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव हारे। दूसरी ओर संगीत सोम ने कहा है कि बालियान निराधार बात कर रहे हैं वे अपने अहंकार की वजह से हारे। गौरतलब है कि पहले संगीत सोम ने आरोप लगाया था कि वे 2022 के विधानसभा चुनाव में सरधना सीट पर बालियान के कारण हारे। बाद में उन्होंने पूरे इलाके में राजपूत महापंचायत की थी, जिसमें भाजपा का विरोध किया गया था।
उधर पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के तमाम पुराने नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस से आए और भाजपा विधायक दल के नेता शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोला है। वे पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए अधिकारी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने अपने हिसाब से टिकट बांटे और भाजपा के पुराने लोगों की अनदेखी की, जिससे पार्टी हार गई। बिहार में सातवें और आखिरी चरण की आठ में से छह सीटों पर एनडीए की हार हुई, जिसमें से चार सीटें भाजपा की थी। कहा जा रहा है कि काराकाट में निर्दलीय पवन सिंह के पीछे भाजपा के नेताओं का हाथ था, जिन्होंने एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा को हराने के लिए यह दांव चला। बगल की औरंगाबाद सीट पर चुनाव लड़े पूर्व सांसद सुशील कुमार सिंह पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि उनकी राजनीति से पार्टी औरंगाबाद और काराकाट सीट पर हारी ही आरा, बक्सर और सासाराम में भी हार गई।
महाराष्ट्र में भाजपा के अलग अलग गुटों में चल रही खींचतान का नतीजा था कि राज्य के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस नतीजों के बाद इस्तीफा देने दिल्ली पहुंचे थे। फड़नवीस बनाम विनोद तावड़े बनाम अन्य के झगड़े में पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव की तैयारी मुश्किल हो रही है। झारखंड में तो और मुश्किल हालात हैं। आदिवासियों के लिए आरक्षित पांचों सीटों पर भाजपा के हारने के बाद टिकट बंटवारे में गड़बड़ी, पैसे के लेन देन, हनी ट्रैप आदि की 10 तरह की चर्चाएं चल रही हैं। वहां भी इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसा लग रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जो अनुशासन बनाया था, एक खराब प्रदर्शन ने उसे खत्म कर दिया है और नेता पहले की तरह खुल कर एक दूसरे के खिलाफ बोलने लगे हैं।