कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में नेता तलाश रही है। पिछले करीब पांच साल से प्रियंका गांधी वाड्रा प्रभारी के तौर पर उत्तर प्रदेश में काम कर रही थीं। उन्होंने पहले अजय सिंह लल्लू को अध्यक्ष बनवाया था और अब बृजलाल खाबरी को अध्यक्ष बनाया है। यानी कांग्रेस की राजनीति पिछड़ा और दलित वाली रही है। अब कांग्रेस को राज्य में नई राजनीति करनी है तो उसे ऐसे चेहरे की तलाश है, जो अपने दम पर कांग्रेस को खड़ा कर सके। कर्नाटक के बाद कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि मुस्लिम उसको वोट देंगे और मल्लिकार्जुन खड़गे की वजह से दलित वोट मिलने की भी उम्मीद है। बसपा प्रमुख मायावती की निष्क्रियता से भी कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि कुछ दलित वोट उसकी ओर शिफ्ट होगा। लेकिन कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसके पास नेता नहीं है। पिछले तीन दशक में कांग्रेस ने नए नेता नहीं खड़े किए।
कांग्रेस के पास राज्य में ले-देकर एक मुस्लिम नेता सलमान खुर्शीद हैं। वे भी अपनी चमक काफी पहले खो चुके हैं। पिछले दिनों कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी को राज्यसभा भेजा लेकिन वे कोई जमीनी नेता नहीं हैं और न संगठन के आदमी हैं। वे मंच के लोकप्रिय कवि हैं और किसी बड़े नेता को उनकी शक्ल पसंद आ गई तो वे राज्यसभा चले गए। वे उत्तर प्रदेश तो छोड़िए अपने गृह जिले में भी कांग्रेस के पक्ष में दो-चार वोट भी शिफ्ट कराने की स्थिति में नहीं हैं। तभी सवाल है कि कांग्रेस के पास मुस्लिम वोट में मैसेज देने के लिए कोई बड़ा मुस्लिम नेता नहीं है।
इसी तरह राज्य में कांग्रेस के पास कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा भी नहीं है। कमलापति त्रिपाठी के परिवार के ललितेश पति त्रिपाठी तृणमूल कांग्रेस में चले गए। जितिन प्रसाद भाजपा में जाकर मंत्री बन गए। वाराणसी में ले-देकर राजेश मिश्र हैं। दलित नेतृत्व में खाबरी हैं, जो बसपा से आए हैं और पीएल पुनिया हैं, जो पहले अधिकारी थे और मायावती के बड़े करीबी थे। बेनी प्रसाद वर्मा बड़ा पिछड़ा चेहरा थे लेकिन वे भी बसपा से आए थे। उनके बाद कोई उस कद का नेता कांग्रेस के पास बचा नहीं। उन्हीं की जाति के आरपीएन सिंह थे, जिनको कांग्रेस ने आगे बढ़ाया था। अब वे भाजपा में चले गए हैं। आखिरी बड़ा वैश्य चेहरा श्रीप्रकाश जायसवाल थे और वे भी अब कहां हैं, किसी को पता नहीं है। प्रदेश में कोई बड़ा जाट नेता कांग्रेस के पास पहले से नहीं है। सो, किसी भी जाति या समुदाय का देखिए या जाति व समुदाय से निरपेक्ष होकर देखिए तो कांग्रेस के पास नेता नहीं हैं। इसलिए उसको सपा के सहारे ही राजनीति करनी होगी अन्यथा वह दो-ढाई फीसदी वोट पर सिमटी रहेगी।