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उत्तर प्रदेश में खुली जातीय लड़ाई

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उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री कार्यालय योगी आदित्यनाथ को एक निर्वाचित सीएम की बजाय ‘महाराज’ के रूप में यानी गोरक्षापीठ को पीठाधीश्वर महंत के तौर पर ज्यादा पेश करता है। हर सरकारी विज्ञप्ति या सोशल मीडिया पोस्ट में उनको इसी रूप में संबोधित किया जाता है। वे एक बड़े हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर राजनीति में भी प्रोजेक्ट किए गए हैं लेकिन उनके शासन की पहचान जातीय विवाद है और वह भी भाजपा के अंदर व बाहर दोनों जगह। ताजा मामला लखीमपुर खीरी का है, जहां भाजपा के एक विधायक की पिटाई हो गई और बेचारे पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने के लिए भटकते रहे। अब यह पिटाई का मामला जातीय विवाद में बदल गया है। यह विवाद ठाकुर बनाम कुर्मी का रूप लेता जा रहा है।

असल में लखीमपुर खीरी में एक सहकारी बैंक की कार्यकारिणी का चुनाव था, जिस पर मुख्यमंत्री की जाति के अवधेश सिंह का कब्जा था। अवधेश सिंह जिला अधिवक्ता संघ के भी प्रमुख हैं। वे चाहते थे कि चुनाव की नौबत न आए लेकिन कुर्मी जाति के विधायक योगश वर्मा इस मामले में दखल दे रहे थे। सो, अवधेश सिंह और उनके लोगों ने विधायक की पिटाई कर दी, जिसका वीडियो सोशल मीडिया में वायरल है। अब एक तरफ कुर्मी और पटेल संगठन मोर्चा खोले हुए हैं तो दूसरी ओर क्षत्रिय संगठन महापंचायत बुला रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में यह आमतौर पर कहा जाने लगा है कि मुख्यमंत्री की जाति के खिलाफ पुलिस मुकदमे नहीं करती है। हर जगह अहम पदों पर ठाकुर अधिकारियों की नियुक्ति का विवाद भी चल रहा है। इसे लेकर पिछले दिनों एक चर्चित पत्रकार ने ठाकुर राज बनाम यादव राज की स्टोरी बना दी तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके ऊपर मुकदमा कर दिया। जो एफआईआर दर्ज की गई उसमें योगी आदित्यनाथ को एक तरह से भगवान का अवतार बताते हुए कहा गया कि कोई व्यक्ति कैसे उन पर इस तरह के आरोप लगा सकता है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार को किसी तरह की कार्रवाई से राहत दी और पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि खबर दिखाने या छापने के लिए कैसे किसी पर मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।

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