लोकसभा चुनाव के बाद चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए और चार में से तीन राज्यों में अभी तक नेता विपक्ष नहीं चुना गया है। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में नेता विपक्ष नहीं हैं। जम्मू कश्मीर में जरूर भारतीय जनता पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष चुन दिया है। हरियाणा में तो आठ अक्टूबर को ही नतीजे आए यानी दो महीने से ज्यादा गुजर चुके हैं और कांग्रेस पार्टी ने अभी तक तय नहीं किया है कि नेता प्रतिपक्ष कौन होगा। इसे लेकर विधानसभा के पहले सत्र में खूब नोकझोंक भी हुई।
नेता प्रतिपक्ष के लिए तय कुर्सी पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही बैठ रहे हैं लेकिन अभी तक आधिकारिक रूप से उनको चुना नहीं गया है। इस बीच सरकार नेता प्रतिपक्ष के तौर पर चंडीगढ़ में उनको आवंटित बंगला खाली कराने की तैयारी में भी जुट गई है। कांग्रेस की आपसी खींचतान में विधायक दल का नेता नहीं तय हो पा रहा है। opposition leaders
इसी तरह झारखंड में भारतीय जनता पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी है लेकिन भाजपा तय नहीं कर पा रही है कि वह किसको विधायक दल का नेता चुने। झारखंड की अनोखी स्थिति यह है कि पिछली विधानसभा में चार साल से ज्यादा समय तक कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं रहा। भाजपा ने अपनी पार्टी का विलय करने वाले बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुन दिया था लेकिन दलबदल के आरोपों के कारण स्पीकर ने उनको नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया। आखिर चार साल के बाद उनकी जगह अमर बाउरी को नेता बनाया गया तो वे नेता प्रतिपक्ष बने।
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चुनाव के बाद विधानसभा के पहले सत्र में बाबूलाल मरांडी विधायक दल के नेता की तरह बरताव कर रहे हैं और वे स्पीकर के चुनाव में प्रस्तावक बने तो निर्विरोध चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के साथ स्पीकर को उनके आसन तक छोड़ने भी गए। लेकिन आधिकारिक रूप से उनका चुनाव नहीं हुआ है। उधर महाराष्ट्र में अलग स्थिति है। वहां किसी पार्टी को 10 फीसदी सीट यानी कम से कम 28 सीट नहीं मिली है। इसलिए सरकार किसी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने को तैयार नहीं है। opposition leaders
तभी महा विकास अघाड़ी की तीनों पार्टियों ने मिल कर नेता प्रतिपक्ष पद पर दावा किया है। यह अलग बात है कि दिल्ली विधानसभा में जब भाजपा को सिर्फ तीन सीटें मिली थीं तब भी आम आदमी पार्टी ने उसको नेता प्रतिपक्ष का पद दे दिया था और उसने ले भी लिया था। लेकिन खुद भाजपा ऐसा सद्भाव किसी के प्रति नहीं दिखाती है।