वैसे तो भारतीय सेना ने अपनी असाधारण बहादुरी, अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान से देश को गर्व करने के अनेक मौके दिए हैं लेकिन अगर देश में किसी साधारण व्यक्ति से भी पूछा जाए कि भारतीय सेना का सबसे गौरवशाली क्षण कौन सा था तो ज्यादातर लोगों का जवाब होगा, 1971 की लड़ाई, जिसके बाद बांग्लादेश का गठन हुआ था और पाकिस्तानी फौज के 96 हजार जवानों भारत के सामने समर्पण किया था। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तानी फौज के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के पिस्तौल रख कर सरेंडर करने की तस्वीर आज भी रोमांचित कर देती है।
तभी भारतीय थल सेना के प्रमुख के कार्यालय के लाउंज में पाकिस्तानी सेना के सरेंडर की पेटिंग लगाई गई थी। अब उस पेटिंग को वहां से हटा दिया गया है। उसकी जगह एक नई पेंटिंग लगाई गई है, जिसका शीर्षक है, ‘कर्म क्षेत्र-फील्ड ऑफ डीड्स’। इसे 28, मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब ने बनाया है। इसमें भारतीय सेना को ‘गार्डियन ऑफ धर्म’ के तौर पर दिखाया गया है। सेना के अनेक पुराने अधिकारी और वार वेटरन इससे नाराज हैं। उनका कहना है कि भारतीय सेना में जोश और आत्मविश्वास भरने वाली असली पेंटिंग पाकिस्तानी सेना के सरेंडर की थी। लेकिन उसे हटा कर कुछ मिथकीय परिकल्पनाओं की तस्वीर लगाने का कोई मतलब नहीं है। सवाल है कि देश के मूल्यों, धर्म आदि की रक्षा करने वाली फोर्स के रूप में दिखाने वाली अमूर्त अवधारणा पर आधारित पेंटिंग सैनिकों का ज्यादा आत्मबल बढ़ाएगी या भारतीय सेना की सर्वोच्च उपलब्धि उनके अंदर जोश, उत्साह भरेगी? क्या यह सेना के गौरवशाली इतिहास को दुनिया की नजरों से दूर करने वाला फैसला नहीं है?