यह भी दिलचस्प तुलना है कि किस तरह से नरसिंह राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं हुआ, जबकि चंद्रशेखर का हुआ और फिर मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर हुआ। नरसिंह राव का निधन 23 दिसंबर 2004 को हुआ था। उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखा है कि अहमद पटेल ने उस समय बारू से कहा था कि वे राव के बेटों रंगाराव और प्रभाकर राव व बेटी वाणी को तैयार करें कि वे उनका पार्थिव शरीर हैदराबाद ले जाएं। नरसिंह राव के ये तीन बच्चे चाहते थे कि राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो और राजघाट के पास उनकी भी समाधि बने। जब बारू ने उनको मनाने का काम नहीं किया तो तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी को इस काम में लगाया गया। पता नहीं कैसे लेकिन रंगा, प्रभाकर और वाणी अपने पिता का पार्थिव शरीर हैदराबाद ले जाने के लिए तैयार हो गए।
कांग्रेस नेतृत्व ने यही तरीका चंद्रशेखर के निधन पर भी आजमाना चाहा। जब 2007 में चंद्रशेखर का निधन हुआ तो कांग्रेस सरकार ने उनके परिवार पर दबाव बनाया कि चंद्रशेखर का अंतिम संस्कार उनको भोंडसी आश्रम में कराया जाए। लेकिन चंद्रशेखर के बेटे इसके लिए तैयार नहीं हुए। जब सरकार की ओर से दबाव बनाया गया तो उन्होंने कह दिया कि फिर वे अपने पिता का अंतिम संस्कार बिना किसी राजकीय समारोह के लोधी रोड शवदाह गृह में कर देंगे।
उनके इस स्टैंड से कांग्रेस को लगा कि इससे देश भर में एक बड़े वर्ग में नाराजगी होगी। सो, कांग्रेस और केंद्र सरकार पीछे हटे और चंद्रशेखर का अंतिम संस्कार यमुना के किनारे हुए, जहां एकता स्थल के नाम से उनकी समाधि बनी। परंतु मनमोहन सिंह के लिए ऐसा लग रहा है कि कोई इस तरह अड़ने वाला नहीं आगे आया तो उनका अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर हुआ। वे देश के पहले पूर्व प्रधानमंत्री हैं, जिनका अंतिम संस्कार दिल्ली के किसी शवदाह गृह में हुआ है। इससे एक नई परंपरा शुरू हुई है।