लोकसभा चुनाव से पहले तक नीतीश कुमार भाजपा से एक ही अनुरोध कर रहे थे कि जल्दी विधानसभा चुनाव हो जाएगा। इस साल जनवरी में राजद का साथ छोड़ने से पहले तक वे लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव से भी यही अनुरोध करते थे। लोकसभा चुनाव के नतीजों में जब भाजपा और जदयू दोनों बराबरी पर आ गए और राजद काफी पीछे छूट गई तब लगा कि नीतीश अब भाजपा से अपनी बात मनवा लेंगे। लेकिन नतीजों के बाद सब कुछ बदल गया दिख रहा है। अब नीतीश या उनकी पार्टी के नेता जल्दी चुनाव की बात नहीं कर रहे हैं।
असल में नीतीश कुमार 2020 के चुनाव में सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गए थे। वे बिहार की तीसरे नंबर की पार्टी बन गए थे। तभी से वे बेचैन थे कि किसी भी गठबंधन में जल्दी चुनाव हो जाए और वे अपने विधायकों की संख्या बढ़ा लें। अब वे इस जल्दी में नहीं दिख रहे हैं। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू दोनों ने 12-12 सीटें जीती हैं और यह आम धारणा बनी है कि बिहार में अगर नीतीश का साथ नहीं मिलता तो भाजपा को बहुत नुकसान होता। केंद्र में भी भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है और नरेंद्र मोदी सरकार जनता दल यू के समर्थन से बनी है। सो, अब बिहार भाजपा के नेताओं ने नीतीश पर हमला करना या उनको परिस्थितियों का मुख्यमंत्री कहना बंद कर दिया है। अब पूरी पार्टी नीतीश के सामने सरेंडर है। सारे नेता कह रहे हैं कि अगला विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।
तभी समय से पहले चुनाव को लेकर सस्पेंस बन गया है। टो टाइमलाइन दी जा रही है। एक साल के अंत में झारखंड के साथ बिहार का भी चुनाव हो जाए और दूसरी टाइमलाइन अगले साल के अंत में यानी तय समय पर चुनाव हो। राज्य सरकार ने अगले तीन महीने में यानी सितंबर खत्म होने तक 1।99 लाख सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। नीतीश के सात निश्चय पार्ट दो के तहत ये नौकरियां दी जाएंगी। इसी के तहत पहले भी नौकरी दी गई, जिसका श्रेय तेजस्वी यादव लेते हैं। वे दावा करते हैं कि वे नीतीश सरकार में उप मुख्यमंत्री बने तभी नौकरियां मिली थीं। अब तीन महीने में दो लाख नौकरी देकर सरकार यह मैसेज देगी कि नौकरियां नीतीश दे रहे हैं। उनका तेजस्वी से कोई लेना देना नहीं है। तभी कुछ नेता कह रहे हैं कि दो लाख नौकरी देने के बाद चुनाव हो जाएगा। लेकिन दूसरी ओर सरकार ने अगले साल मार्च तक ढाई लाख और नौकरी देने का ऐलान किया है। इसके लिए रिक्तियों की सूचना भर्ती के लिए बने आयोगों को भेज दी गई है। तभी पटना में एक जानकार नेता का कहना है कि चुनाव के समय का फैसला नीतीश की सेहत के आधार पर होगा। अगर सेहत ज्यादा बिगड़ने का संदेश जनता में गया तो फिर एनडीए को कोई दूसरा नेता नहीं बचा पाएगा।