दुनिया के सभ्य और विकसित देशों में एक्जिट पोल भरोसे की चीज होती है। उसमें एजेंसियां जो बताती हैं वह सही साबित होती हैं और लोग उस पर भरोसा करते हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में एक्जिट पोल की बुनियादी बातों का भी ध्यान नहीं रख जाता है। यही कारण है कि अगर 10 एजेंसिया एक्जिट पोल करने का दावा कर रही हैं तो सबके नतीजे अलग अलग होते हैं। ओपिनियन पोल के बारे में तो माना जा सकता है कि सारी एजेंसी के नतीजे अलग अलग आए क्योंकि मतदान करने से पहले से मतदाता कुछ भी कहता है। कई बार उसने मन नहीं बनाया होता है। कई बार मतदान केंद्र तक जाते जाते उसका मन बदल जाता है। लेकिन एक्जिट पोल में कैसे नतीजे अलग हो सकते हैं? इसका मतलब है कि एक्जिट पोल करने वाली एजेंसियां मनमाने तरीके से निष्कर्ष तैयार करती हैं या मतदाता भी उनके मजे लेते हैं और उलटी सीधी बातें बताते हैं।
इस बार दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में एक दर्जन एक्जिट पोल हुए हैं, जिनमें आधी से ज्यादा एजेंसियां बिल्कुल नई हैं और इसी बार लोगों ने उनका नाम सुना है। लोकसभा चुनाव में और उसके बाद हरियाणा में बुरी तरह से फेल होने के बाद कई पुरानी और जमी जमाई एजेंसियां शांत बैठ गईं तो दूसरे लोगों को मौका मिल गया। कई नई एजेंसियां मार्केट में आ गईं, जिनमें से कुछ ने कहा कि दोनों राज्यों में भाजपा गठबंधन की सरकार बनेगी तो कुछ ने कहा कि दोनों जगह ‘इंडिया’ ब्लॉक की सरकार बनेगी। किसी की कोई जवाबदेही नहीं है। इनमें से कोई न कोई तो सही साबित होगा। जो सही साबित होगा, उसकी दुकान थोड़े दिन चलेगी और फिर कोई दूसरा उसकी जगह ले लेगा।