वैसे सोशल मीडिया में यह बात काफी समय से कही जा रही है कि कोई भी व्यक्ति सेबी की प्रमुख माधवी पुरी बुच पर हमला कर रहा है तो भाजपा के प्रवक्ता जवाब देने सामने आ रहे हैं। सो, इस रिश्ते की पड़ताल पहले से चल रही है कि आखिर ऐसा क्या है कि सेबी प्रमुख को बचाने के लिए भाजपा को इतना प्रयास करना पड़ रहा है। अगर सरकार का या सत्तारूढ़ पार्टी का कोई हित नहीं है तो जितने आरोप सेबी प्रमुख पर लगे हैं उसमें तो उन्हें हटा कर स्वतंत्र जांच की घोषणा बहुत पहले हो जानी चाहिए थी। उनके ऊपर उस कंपनी में निवेश का आरोप लगा, जिसने अडानी समूह में निवेश किया और जिसकी जांच सेबी ने की। उन पर सेबी में रहने आईसीआईसीआई बैंक से पैसे लेने का आरोप लगा और अब महिंद्रा एंड महिंद्रा से करोड़ों रुपए लेने का मामला सामने आया है।
इसके बावजूद उनको हटा कर स्वतंत्र जांच की कोई संभावना नहीं दिख रही है। उलटे उनको बचाने के लिए सारे उपाय आजमाए जा रहे हैं। जैसे संसद की लोक लेखा समिति या पीएसी की बैठक में पिछले दिनों कहा गया है कि सेबी की जिम्मेदारियों की जांच करने के लिए सेबी प्रमुख को पीएसी में बुलाया जाएगा। इस पर भाजपा के सांसद नाराज हो गए। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि यह काम सीएजी का है कि वह सेबी के कामकाज पर रिपोर्ट दे और उस रिपोर्ट पर ही पीएसी में चर्चा हो सकती है। पीएसी सीधे सेबी प्रमुख की जांच नहीं कर सकती है। हो सकता है कि नियम के हिसाब से ऐसा ही होता हो लेकिन जब एक वित्तीय संस्था की इतनी बड़ी अधिकारी पर इतने बड़े आरोप लगे हैं तो उस व्यक्ति और संस्था की ईमानदारी प्रमाणित करने पर जोर होना चाहिए न कि नीतियों के आधार पर जांच रोक कर परदा डालने का प्रयास होना चाहिए।