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चिराग, अठावले आदि सेफ्टी वाल्व

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के बंटवारे के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कुछ ऐसे नेताओं ने विरोध किया है, जो भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया में कुछ ऐसे इन्फ्लूयंसर्स और यूट्यूबर्स ने भी इसका विरोध किया है, जो वैसे सारे समय भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करते रहते हैं। अपने को घोषित दक्षिणपंथी बताते हैं वे भी इसका विरोध कर रहे थे। एससी और एसटी आरक्षण का वर्गीकरण के फैसले का विरोध करने वाले नेताओं ने लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान हैं तो आरपीआई के नेता रामदास अठावले भी हैं। सवाल है कि भाजपा की सहयोगी पार्टियों के नेता क्यों इसका विरोध कर रहे हैं, जबकि भाजपा इस मसले पर चुप है? क्या इन नेताओं के विरोध से एनडीए की स्थिति पर कोई फर्क पड़ेगा?

असल में इन नेताओं की नाराजगी एक राजनीतिक पोजिशनिंग है। इनको सैद्धांतिक रूप से इस फैसले से ज्यादा आपत्ति नहीं होगी। या कम से कम वैसी आपत्ति नहीं होगी, जैसी मायावती या चंद्रशेखर को है। दूसरे, इनकी भाजपा से भी कोई नाराजगी नहीं है। हकीकत में ये नेता सेफ्टी वाल्व का काम कर रहे हैं। ये दलित और आदिवासी समाज के गुस्से को आवाज देकर उनका गुस्सा ठंडा कर रहे हैं। अगर मुख्यधारा की पार्टियां इस फैसले के विरोध में नहीं उतरतीं तो हाशिए पर की पार्टियों और दूसरे फ्रिंज एलीमेंट्स को राजनीति करने का मौका मिलता। सोशल मीडिया में इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के खिलाफ जैसी हेट स्पीच दी जा रही है उससे आम लोगों की भावनाओं को भड़काया जा सकता था। अगर ऐसा होता तो उसका असर बहुत बड़ा हो सकता था। तभी भाजपा की सहयोगी पार्टियों के जो नेता इसका विरोध कर रहे हैं वे असल में इन दोनों समुदायों के लोगों का गुस्सा कम कर रहे हैं।

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