अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के वर्गीकरण और उसमें क्रीमी लेयर लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार नहीं लागू करेगी। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में शुक्रवार को इसका फैसला हुआ। इसका मतलब है कि सरकार एक अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त करेगी। अभी तक भारतीय जनता पार्टी ने आधिकारिक रूप से इस फैसले पर चुप्पी साधे रखी थी। दूसरी ओर कांग्रेस भी कुछ नहीं कह रही थी। हालांकि तेलंगाना के उसके मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने फैसले के तुरंत बाद ऐलान कर दिया था कि इस फैसले को लागू करने वाला तेलंगाना पहला राज्य बनेगा। इससे कांग्रेस का नजरिया साफ हो गया था। ऐसा लग रहा था कि भाजपा और कांग्रेस दोनों इसके समर्थन में हैं और शिव सेना, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस आदि का मौन समर्थन हासिल है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का भी मौन समर्थन इसे हासिल था।
चिराग पासवान जैसे एकाध छोटे सहयोगी इस फैसले का विरोध कर रहे थे लेकिन ऐसा लग रहा है कि दलित और पिछड़े समाज के बौद्धिकों के सोशल मीडिया में चलाए अभियान के दबाव में सरकार पीछे हटी है। सोशल मीडिया में इस फैसले के खिलाफ और न्यायपालिका के खिलाफ भी माहौल बनाया गया था। उसके बाद ही 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान हुआ और फिर मायावती व चंद्रशेखर इसके विरोध में उतरे। परंतु इन सबके विरोध से ज्यादा सोशल मीडिया के बौद्धिकों और चिंतकों का दबाव काम आया। उन्होंने समूचे समुदाय को आंदोलित कर दिया था।
कहीं न कहीं बांग्लादेश का घटनाक्रम भी सरकार के पीछे हटने का एक कारण बना। गौरतलब है कि बांग्लादेश में भी अदालत ने ही आरक्षण में बदलाव किया था और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से जुड़े लोगों के बच्चों को मिलने वाला आरक्षण 30 फीसदी कर दिया था। उसके बाद ही छात्रों का आंदोलन भड़का था। ध्यान रहे मणिपुर की हिंसा भी बहुसंख्यक मैती समुदाय को एसटी का दर्जा देने के हाई कोर्ट के फैसले से ही शुरू हुआ था।