कांग्रेस पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टियों में खास कर भाजपा में जाने वाले कुछ नेताओं की चांदी है। कई नेता तो मुख्यमंत्री बन गए हैं। असम में हिमंत बिस्वा सरमा, त्रिपुरा में माणिक साहा, मणिपुर में एन बीरेन सिंह, अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू आदि पहले कांग्रेस में थे और अब भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री हैं। कई पूर्व कांग्रेसी नेता केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं। लेकिन बड़ी संख्या में नेता ऐसे भी हैं, जो कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए और कुछ हाथ नहीं लगा। उनकी स्थिति न माया मिली न राम वाली हो गई। ऐसे कई नेता कांग्रेस में भी हैं और कुछ दूसरी पार्टियों में भी हैं। कांग्रेस छोड़ कर दूसरी विपक्षी पार्टी में गए नेताओं की दशा थोड़ी और खराब है क्योंकि अब उनकी पार्टी का कांग्रेस से तालमेल हो गया है।
कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में गए नेताओं की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है क्योंकि अब दोनों पार्टियां विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल हैं। महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देब कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल में गई थीं और उनको दो साल की राज्यसभा भी मिली थी लेकिन इस बार ममता बनर्जी ने उनको राज्यसभा नहीं भेजा। वे अपने लिए लोकसभा सीट की तलाश में लगी हैं क्योंकि उनकी पुरानी सिलचर सीट रिजर्व हो गई है। इसी तरह मेघालय में कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकुल संगमा कांग्रेस के 14 में से 13 विधायकों को लेकर तृणमूल में चले गए थे। लेकिन अब वहां तृणमूल के सिर्फ पांच विधायक बचे हैं। गोवा के कांग्रेस नेता लुइजिन्हो फ्लेरियो भी तृणमूल में गए थे लेकिन उनको भी राज्यसभा सीट से इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए आरपीएन सिंह अपनी प्रासंगिकता लगभग खो चुके हैं। वे कहां हैं और क्या कर रहे हैं यह किसी को पता नहीं है। कांग्रेस छोड़ कर अपनी पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद भी राजनीति के बियाबान में भटक रहे हैं।