पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने तारीखों की घोषणा कर दी है। चुनावों में हमेशा सरकारों के कामकाज की समीक्षा होती है और उस आधार पर वोट मांगे जाते हैं। उसी आधार पर विपक्ष की ओर से सरकार पर हमला किया जाता है। शायद ही कभी ऐसा होता है कि चुनाव में विधानसभा के कामकाज की रिपोर्ट आए और उसकी समीक्षा की जाए। सोचें, यह जानना कितना जरूरी है कि जिस विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं, पांच साल में उसकी परफॉरमेंस कैसी है? उसने कितना काम किया है और क्या काम किया है?क
एक रिपोर्ट के मुताबिक इन पांचों राज्यों की विधानसभाओं का कामकाज औसत से भी कम रहा है। आखिरी साल में यानी चुनावी साल में हुए आकलन के मुताबिक इन पाचों विधानसभाओं की बैठक हर साल औसतन 30 दिन भी नहीं हुई है। पिछले 10 साल में सबसे ज्यादा राजस्थान की विधानसभा की कार्यवाही हर साल औसतन 29 दिन चली है। तेलंगाना में तो सालाना औसत 15 दिन का है। मध्य प्रदेश में हर साल औसतन सिर्फ 21 दिन विधानसभा की कार्यवाही चली है। सिर्फ बैठकों का मामला नहीं है। विधानसभाओं में विधेयकों पर चर्चा भी कम होती जा रही है और विधेयकों के समितियों के पास भी कम ही भेजा जाता है। पीआरएस लेजिस्लेटिव की रिपोर्ट के मुताबिक इन पांचों विधानसभाओं में 48 फीसदी विधेयक पेश होने के दिन या उसके अगले दिन पास हो गए हैं। मिजोरम में यह औसत सौ फीसदी है। राज्य की मौजूदा सरकार ने इस कार्यकाल में 57 विधेयक पास कराए और सारे विधेयक जिस दिन पेश हुए उसी दिन या उसके अगले दिन पास हो गए।