केंद्र सरकार ने 2017 में अन्य पिछड़ी जातियों के वर्गीकरण के लिए एक आयोग का गठन किया था। जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता वाले इस आयोग को एक दर्जन से ज्यादा विस्तार मिला लेकिन अंततः उसने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। अगले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टियों की जाति गणना रणनीति का जवाब देने के लिए केंद्र सरकार इसका क्या इस्तेमाल करती है वह देखने वाली बात होगी। उससे पहले अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण के लिए एक आयोग बनाने की चर्चा शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसका संकेत तेलंगाना की चुनावी रैली में किया।
हालांकि प्रधानमंत्री ने मदिगा समुदाय का संदर्भ देते हुए कहा कि सरकार जल्दी ही इस मामले में आयोग बनाएगी। असल में कृष्णा मदिगा लम्बे समय से अनुसूचित जाति के भीतर मदिगा समुदाय के अलग आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं। वे उस दिन मंच पर प्रधानमंत्री के साथ थे और बहुत भावुक भी हो गए थे। तभी प्रधानमंत्री ने भारत राष्ट्र समिति और कांग्रेस दोनों को दलित विरोधी बताते हुए एक घोषणा कर दी। संभव है कि लोकसभा चुनाव से पहले सरकार इस बारे में आयोग बनाए। हालांकि भाजपा इसके राजनीतिक नफ-नुकसान को लेकर बहुत सजग है। ध्यान रहे कर्नाटक में उसकी सरकार ने एससी आरक्षण में छेड़छाड़ की थी, जिसका उसे नुकसान हुआ था। इसलिए हो सकता है कि आयोग बन जाए लेकिन रोहिणी आयोग की तरह उसका कार्यकाल भी लम्बा चले।