इस बार लोकसभा चुनाव और उसके साथ हुए विधानसभा चुनावों में ऐसा लग रहा था कि कई पार्टियों के उत्तराधिकार का मसला सुलझ जाएगा। बड़े और रिटायर होने की कगार पर पहुंचे नेता अपना उत्तराधिकारी तय कर देंगे। लेकिन एक तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू को छोड़ कर किसी पार्टी में उत्तराधिकारी तय नहीं हुआ। उलटे कई पार्टियों में उत्तराधिकार का मामला उलझ गया। जिन प्रादेशिक पार्टियों में उत्तराधिकार का मामला उलझा है उनमें नीतीश कुमार की जनता दल यू, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल और के चंद्रशेखर राव की बीआरएस है।
ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश छोड़ कर देश के बाकी सभी राज्यों के संगठन का कामकाज भी उनको सौंप दिया। इसके बाद आकाश ने उत्तर प्रदेश में धुआंधार प्रचार शुरू किया। उनके तेवर युवा मायावती की याद दिलाने वाले थे। लेकिन जैसे ही वे भाजपा के खिलाफ बहुत मुखर हुए। मायावती ने चुनाव के बीच उनको संगठन के सभी पदों से हटा दिया और अपने उत्तराधिकार से भी बेदखल कर दिया। चुनाव नतीजों में मायावती की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और उनका वोट नौ फीसदी रह गया। आने वाले काफी समय तक बसपा में उत्तराधिकार का मसला उलझा रहना है।
इसी तरह ओडिशा में बीजू जनता दल में नवीन पटनायक का उत्तराधिकारी भी चुनाव से ऐन पहले तय हो गया था। लंबे समय तक उनके प्रधान सचिव रहे वीके पांडियन ने आईएएस की सेवा से वीआरएस ले लिया था और पार्टी में शामिल हो गए थे। उनको अहम जिम्मेदारी दी गई थी। नवीन पटनायक पहली बार दो सीटों से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे और कहा जा रहा था कि वे एक सीट पांडियन के लिए छोड़ देंगे। चुनाव के बाद पांडियन को मुख्यमंत्री बनाने की पूरी तैयारी थी। परंतु चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पांडियन के तमिल मूल का मुद्दा उठा दिया। चुनाव के बीच कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए, जिससे ओडिशा के लोग नाराज हुए। भाजपा की ओर से उठाया गया अस्मिता का कार्ड काम कर गया और बीजू जनता दल की हार हो गई। नवीन पटनायक 24 साल के बाद सत्ता से बाहर हुए। इसके बाद उन्होंने ऐलान कर दिया कि पांडियन उनके उत्तराधिकारी नहीं हैं। खुद पांडियन ने भी सक्रिय राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया। अब पार्टी फिर वहीं खड़ी है, नवीन बाबू के उत्तराधिकारी की तलाश में।
ऐसे ही नीतीश कुमार की सेहत को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। माना जा रहा था कि इस बार लोकसभा चुनाव में कोई एक चेहरा निकलेगा, जो उनका उत्तराधिकारी हो सकता है। उपेंद्र कुशवाहा के बारे में माना जा रहा था कि वे उनके उत्तराधिकारी हो सकते हैं। लेकिन वे चुनाव हार गए हैं। नीतीश की अपनी पार्टी के दो बार के सांसद संतोष कुशवाहा भी चुनाव हार गए हैं। नीतीश की सेहत बिगड़ रही है और जनता दल यू के साथ साथ भाजपा को भी उनके उत्तराधिकारी की चिंता है। इसी तरह बीआरएस की विधानसभा और लोकसभा दोनों में मिली हार ने चंद्रशेखर राव को बैकफुट पर ला दिया है। अब उन्हें जेल में बंद बेटी के कविता को छुड़ाना है और बेटे केटी रामाराव व भतीजे के हरीश राव में से उत्तराधिकारी चुनना है।