अब कांग्रेस पार्टी कुछ भी फैसला करे लेकिन उसने राम मंदिर के उद्घाटन के मसले पर अपना बड़ा नुकसान कर लिया। वह अपने आप रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन के विरोध में खड़ी हो गई। जैसे ही कांग्रेस ने यह कहा कि उसे उद्घाटन के कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिला है लेकिन उसने अभी तय नहीं किया है कि वहां जाएंगे या नहीं वैसे ही उसने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। गौरतलब है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से मलिल्कार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी को न्योता मिला है। इस बारे में पूछे जाने पर बार बार कांग्रेस कहती रही कि उसने फैसला नहीं किया है। यही बात शनिवार को मल्लिकार्जुन खड़गे ने कही। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जल्दी ही फैसला करेगी।
सवाल है कि इसमें क्या फैसला करना है? क्या कांग्रेस यह फैसला कर सकती है कि उसके तीनों नेता अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएंगे? अगर ऐसा फैसला होता है तो कांग्रेस हिंदी पट्टी से पूरी तरह से साफ होगी। अगर जाने का फैसला होता है तो सवाल है कि वह फैसला तत्काल क्यों नहीं हो गया? फैसले में देरी करके कांग्रेस फिर वही गलती कर रही है, जो राजीव गांधी ने की थी। एक समुदाय को संतुष्ट करने के लिए कांग्रेस ने फैसले में देरी की तो दूसरे समुदाय को संतुष्ट करने के लिए मंदिर में जाने का फैसला करेगी। इससे दोनों तरफ उसका नुकसान होगा। कांग्रेस को सोचना चाहिए कि वह बदरूद्दीन अजमल या असदुद्दीन ओवैसी की तरह राजनीति नहीं कर सकती है। सोनिया, खड़गे और अधीर रंजन को आगे बढ़ कर न्योता स्वीकार करना चाहिए, रामलला के कार्यक्रम में सबसे पीछे बैठाया जाए तब भी जाकर बैठना चाहिए और प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला के दर्शन करके लौटना चाहिए। अगर उनके ऐसा करने से मुस्लिम नाराज होते हैं तो कांग्रेस को समझ लेना चाहिए कि वे नाराज होने का बहाना खोज रहे थे और उनको इस देश की समावेशी संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है।