नरेंद्र मोदी सरकार का कोई मंत्री 22 जनवरी को अयोध्या नहीं गया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छोड़ कर किसी राज्य का मुख्यमंत्री भी अयोध्या नहीं गया। सोचें, अगर केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री अयोध्या चले जाते तो क्या हो जाता? जहां आठ हजार विशिष्ट और अति विशिष्ट अतिथि आए थे वहां 90 लोग और चले जाते तो क्या हो जाता? सबको न्योता भी दिया गया था और खबर भी आई थी कि सबने न्योता स्वीकार भी कर लिया था। इसके बावजूद कोई नेता अयोध्या नहीं गया। सवाल है कि जहां हर उद्योगपति अपने परिवार और विस्तारित परिवार के साथ पहुंचा, फिल्म और खेल जगत के लोग पहुंचे, गायक व कलाकार पहुंचे लेकिन केंद्र सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री नहीं गए। मुंबई से फिल्म वाले सारे गए लेकिन वहां के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और अन्य नेता कार्यक्रम से दूर रहे।
ऐसा भी नहीं है कि भाजपा ने प्राण प्रतिष्ठा के दिन कोई ऐसा बड़ा कार्यक्रम रखा था, जिसके लिए सभी नेताओं का अपने अपने क्षेत्र में रहना जरूरी थी। सब नेता घरों में बैठे थे या आसपास के मंदिरों में गए थे। अमित शाह ने बिरला मंदिर में बैठ कर कार्यक्रम देखा तो जेपी नड्डा ने झंडेवाला मंदिर में और राजनाथ सिंह ने दरियागंज मंदिर में बैठ कर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम देखा। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के बारे में खबर है कि वे घर पर रहे और वह उनके मंत्रालयों से जुड़े पदाधिकारी पहुंचे और सबने साथ बैठ कर टेलीविजन पर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम देखा। सोचें, घर पर या किसी मंदिर में बैठ कर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम देखने से बेहतर यह नहीं होता है कि वे सब लोग भी इतिहास के साक्षी बनते? लेकिन सारे केंद्रीय मंत्री अगर अयोध्या में रहते तो प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भारत सरकार का कार्यक्रम लगता और मुख्यमंत्री भी रहते तो भाजपा का कार्यक्रम लगता। कोई नहीं था तो सब नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम लग रहा था।