कांग्रेस पार्टी वैसे तो किसी बात से कोई सबक नहीं सीखती है लेकिन पंजाब के नतीजों से उसे कुछ न कुछ जरूर सीखना चाहिए। कांग्रेस ने जिस तरह से उप चुनाव में दो सीटों पर अपने दो सांसदों की पत्नियों को उम्मीदवार बनाया वह कितना आत्मघाती हो सकता है, यह साबित हुआ है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा वारिंग सांसद हो गए तो उनकी खाली की हुई गिद्दड़बाह सीट पर उनकी पत्नी को उम्मीदवार बना दिया और सुखजिंदर सिंह रंधावा सांसद बने तो डेरा बाबा नानक सीट पर उनकी पत्नी को उम्मीदवार बना दिया। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव हार गई है।
सोचें, कांग्रेस ने दिमाग लगाने की जरुरत ही नहीं समझी। कार्यकर्ताओं या पुराने नेताओं में से किसी को टिकट देने के बारे में सोचा ही नहीं गया और दोनों सांसदों की पत्नियों को टिकट दे दिया। नतीजा यह हुआ है कि गिद्दड़बाह की सीट पर त्रिकोणात्मक मुकाबला होने के बावजूद आम आदमी पार्टी के हरदीप सिंह डिम्पी ने कांग्रेस की अमृता वारिंग को 15 हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया। उधर डेरा बाबा नानक सीट पर भी आम आदमी पार्टी के गुरदीप सिंह रंधावा ने कांग्रेस की जतिंदर कौर रंधावा को साढ़े पांच हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया। ये दोनों सीटें आम आदमी पार्टी से कांग्रेस से छीनी और तीसरे स्थान पर भाजपा रही। कांग्रेस को इन नतीजों से कुछ सबक सीखना चाहिए।