President rule मणिपुर के बारे में जल्दी ही फैसला होने वाला है। अब फैसले को लेकर केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व के सामने दो विकल्प दिखाई दे रहे हैं। पहला विकल्प मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटा कर दूसरा मुख्यमंत्री बनाने का है और दूसरा राष्ट्रपति शासन लगा कर सीधे केंद्र के नेतृत्व में सरकार चलाने का है। कई सामरिक जानकार चाहते हैं कि मणिपुर में जिस तरह के हालात हो गए हैं और जैसे बाहरी दखल वहां दिखाई दे रहा है उसे देखते हुए केंद्र को राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए और सेना की मदद से हालात सामान्य करना चाहिए।
असल में मणिपुर में कुकी और मैती समुदायों के बीच इतना ज्यादा अविश्वास बढ़ गया है कि दोनों के बीच भरोसा बनाना और राज्य सरकार के प्रति दोनों का भरोसा बहाल करना सरकार की पहली जिम्मेदारी है। यह काम राष्ट्रपति शासन में ही संभव है। थोड़े दिन राष्ट्रपति शासन के बाद लोकप्रिय सरकार का गठन कराया जा सकता है।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन: कुकी और मैती समुदायों के बीच विश्वास बहाली की चुनौती
ज्यादातर सामरिक जानकार President rule की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि बीरेन सिंह को हटा कर नया मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो वह भी मैती हिंदू समुदाय का होगा, जिस पर कुकी समुदाय के लिए तत्काल भरोसा करना मुश्किल होगा। दूसरी बात यह है कि नया सीएम बनाना पर बीरेन सिंह और उनके समर्थक सरकार को अस्थिर किए रहने का प्रयास करेंगे। मैती समुदाय में बीरेन सिंह का जिस तरह से समर्थन है और हर बार लोग उनकी सत्ता बचाने के लिए जैसे सड़कों पर उतरते हैं उसे देख कर यह आशंका है कि नया सीएम शायद शासन ठीक से संभाल न सके। उसके लिए हिंसा खत्म करना मुश्किल होगा।
हालांकि मणिपुर विधानसभा की जैसी स्थिति बन गई है उसमें भाजपा के आला नेतृत्व को लग रहा है कि बीरेन सिंह अब पहले जैसे मजबूत नहीं रह गए हैं। सात विधायकों वाली एनपीपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। तीन निर्दलीय विधायक पहले ही समर्थन वापस ले चुके हैं। एनपीएफ के पांच विधायकों का भी समर्थन बीरेन सिंह को नहीं है। भाजपा के अपने 36 विधायकों में से 14 ने बीरेन सिंह के खिलाफ चिट्ठी लिखी है और सीएम बदलने की मांग की है। इस तरह सरकार समर्थक 29 विधायक बीरेन सिंह के खिलाफ हैं। राज्य में बहुमत का आंकड़ा 31 सीट का है।