राज्यपालों की नियुक्ति का फैसला चौंकाने वाला था। हालांकि कई राजभवन पहले से खाली थे और कई जुलाई में खाली हुई तो कई अगले दो महीने में खाली होने वाले हैं। इसलिए राज्यपालों की नियुक्ति की उम्मीद की जा रही थी और यह भी उम्मीद की जा रही थी कि जिन नेताओं की टिकट कटी है या जो लोकसभा का चुनाव हारे हैं उनमें से कुछ लोगों को राज्यपाल बनाया जाएगा। हालांकि नई नियुक्त में इक्का दुक्का चेहरे ही ऐसे हैं, जिनकी टिकट कटी या जो चुनाव हारे और अब राज्यपाल बने हैं। जिन लोगों को राज्यपाल बनाया गया है उनमें सबसे चौंकाने वाली बात यह दिखती है कि जो हेवीवेट हैं यानी बड़े नाम हैं उनको बहुत छोटे राजभवनों में भेजा गया है।
भाजपा संगठन में अनेक महत्वपूर्ण पद संभाल चुके ओम माथुर को सिक्किम का राज्यपाल बनाया गया है। सोचें, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर उन्होंने कितनी बड़ी जिम्मेदारी संभाली है! वे गुजरात से लेकर राजस्थान तक की राजनीति में तो सक्रिय थे ही छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी बड़ी जिम्मेदारी निभाई है। लेकिन राज्यपाल बने तो सिक्किम के। जबकि हरिभाऊ किशनराव बागड़े को राजस्थान का, लक्ष्मण आचार्य को असम व मणिपुर का, जिष्णु देव वर्मन को तेलंगाना का और रमन डेका को छत्तीसगढ़ का राज्यपाल बनाया गया। इसी तरह दूसरा बड़ा नाम के कैलाशनाथन का है। नरेंद्र मोदी के पहली बार गुजरात के राज्यपाल बनने के बाद से वे वहां का राजकाज संभाल रहे हैं। मोदी के दिल्ली लौटने के बाद तो लगभग पूरा प्रशासन ही उनके हवाले था। लेकिन जब उन्होंने गुजरात छोड़ा तो पुड्डुचेरी का उप राज्यपाल बनाए गए।