prayagraj mahakumbh: पिछले महाकुंभ में यानी 2013 में तब के इलाहाबाद में हुए महाकुंभ में धर्म संसद बहुत बड़ी हुई थी। उसमें कम से कम दो शंकराचार्य मौजूद थे।
उनके अलावा कई अखाड़ों के महामंडलेश्वर भी शामिल हुए। तब अपनी लोकप्रियता के शिखर पर मौजूद बाबा रामदेव भी धर्म संसद में शामिल हुए थे।
उसका आयोजन विश्व हिंदू परिषद की देखरेख में हुआ था और तब विहिप की कमान अशोक सिंघल के हाथ में थी।( prayagraj mahakumbh)
उस समय महाकुंभ की धर्म संसद में प्रधानमंत्री के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का जिक्र हुआ था और साधु संतों ने एक राय से उस पर सहमति जताई थी।
लेकिन इस बार की धर्म संसद में ऐसी कोई एकता नहीं दिखी और न वहां से कोई राजनीतिक संदेश निकला।( prayagraj mahakumbh)
जबकि पहले कहा जा रहा था कि महाकुंभ की धर्म संसद में योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री बनाने की बात उठ सकती है।
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संयोग ऐसा था कि सोमवार, 27 जनवरी को धर्म संसद के समय योगी आदित्यनाथ भी महाकुंभ में मौजूद थे, बाबा रामदेव भी मौजूद थे और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे।
लेकिन धर्म संसद में इनमें से कोई नहीं गया। रामदेव भी उसमें हिस्सा लेने नहीं गए। महाकुंभ में मौजूद कोई शंकराचार्य वहां नहीं गया और 13 अखाड़ों में से किसी के महामंडलेश्वर उसमें नहीं गए।( prayagraj mahakumbh)
विश्व हिंदू परिषद के लोग भी नदारद रहे। कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर उसके कर्ता धर्ता थे। लेकिन धर्म संसद से बाहर कई अखाड़ों के महामंडलेश्वरों ने अमित शाह को स्नान कराया।
वे उनको घेर कर खड़े हुए, मंत्रोच्चार किया और उनके ऊपर संगम का जल डाला।( prayagraj mahakumbh)
उधर योगी आदित्यनाथ के साथ बाबा रामदेव ने स्नान किया और फिर योग करते हुए दोनों की तस्वीरें भी वायरल हुईं। क्या इसमें भी कोई राजनीति हुई? य़ह समझने की बात है।