देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम की कमान एक बार फिर प्रकाश करात को मिल गई है। वे लंबे समय तक सीपीएम के महासचिव रहे। हरकिशन सिंह सुरजीत के बाद उन्होंने पार्टी की कमान संभाली थी और उन्हीं की कमान में सीपीएम स्थायी तौर पर पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा की सत्ता से बाहर हुई। ले देकर अब पार्टी के पास केरल की सरकार बची है। सिर्फ सरकार की बात नहीं है, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में सीपीएम संगठन के तौर पर भी लगभग समाप्त हो गई है। माना जाता है कि करात की शुद्धतावादी राजनीति और अकेले चलने की सोच ने पार्टी को अलग थलग किया। वे गठबंधन की राजनीति में फिट नहीं बैठते हैं तो सफलता के लिए जरूरी समावेशी सोच की भी उनमें कमी है। वे सीताराम येचुरी की तरह लचीले नहीं हैं और व्यावहारिक राजनीति के तौर तरीके नहीं आजमाते हैं।
अगले साल अप्रैल में सीपीएम की पार्टी कांग्रेस होगी, जिसमें नए महासचिव का चुनाव होगा। तब तक प्रकाश करात पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के बीच समन्वयक की भूमिका निभाएंगे। इस जिम्मेदारी में उनको कुछ मुश्किल फैसले करने पड़ सकते हैं। उनके अपने गृह राज्य और सीपीएम के असर वाले एकमात्र राज्य केरल में इस समय घमासान मचा है। पार्टी के कई नेताओं पर कई किस्म के आरोप लगे हैं। एडीजी स्तर के एक पुलिस अधिकारी को लेकर अलग विवाद है और सरकार का समर्थन करने वाले निर्दलीय विधायक पीवी अनवर ने पार्टी के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी की है। वे सीपीएम नेताओं के भाजपा के संपर्क में होने के आरोप लगा रहे हैं और यहां तक दावा किया है कि पिनरायी विजयन केरल के ही नहीं, बल्कि देश के आखिरी कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री साबित हो सकते हैं। केरल के अलावा सीपीएम के पुराने असर वाले दोनों राज्यों में भी नेतृत्व को लेकर कई किस्म के विवाद हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रकाश करात अगले साल अप्रैल तक यथास्थिति बने रहने देते हैं या कुछ फैसला करते हैं। वैसे भी अब वे पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं और उन्हें कोई चुनौती नहीं है। अगला महासचिव भी उनकी मर्जी से ही चुना जाएगा।