बिहार में गठबंधन की बातें भले तय नहीं हो पा रही हैं और सीटों के बंटवारे में बहुत पेंच दिख रहे हैं लेकिन जाति की राजनीति में किसी को कोई कंफ्यूजन नहीं है। जाति गणना के आंकड़ों से पता चला है कि बिहार में 36 फीसदी आबादी अत्यंत पिछड़ों की है। इसमें आठ फीसदी मुस्लिम आबादी भी शामिल है। उसे हटा दें तब भी 26 फीसदी आबादी का एक बड़ा ब्लॉक है। अभी तक इस आबादी के एकमात्र नेता नीतीश कुमार थे। उनकी पार्टी अत्यंत पिछड़ा और महादलित वोट की राजनीति करती थी। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के अपने लंबे कार्यकाल के बिल्कुल शुरुआत में ही कर्पूरी ठाकुर के फॉर्मूले पर पिछड़ा और अति पिछड़ा का आरक्षण कर दिया था और दलित व महादलित के दो अलग समूह बना दिए थे। नीतीश कुमार से अलग होने के बाद भारतीय जनता पार्टी भी अत्यंत पिछड़ा राजनीति में हाथ आजमा रही है हालांकि उसे अभी बहुत कामयाबी हाथ नहीं लगी है।
इस बीच बिहार की राजनीति में अत्यंत पिछड़ा प्रतिनिधि चेहरा रहे पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती आ गई है। कर्पूरी ठाकुर की राजनीति पर मंडल के दोनों नेता लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दावा करते हैं लेकिन मूल रूप से उसके प्रतिनिधि नीतीश कुमार ही है, जिन्होंने कर्पूरी के ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर को राज्यसभा भी भेजा है। वे लगातार दो बार से राज्यसभा में हैं और इस बार भी उनको नया कार्यकाल मिल सकता है। लेकिन 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती के मौके पर नीतीश कुमार के साथ साथ भाजपा भी बड़ा कार्यक्रम कर रही है। नीतीश की पार्टी ने वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में बड़ी रैली का आयोजन किया है तो भाजपा ने मिलर स्कूल में रैली रखी है। भाजपा के नेता सुशील मोदी ने दावा किया है कि राजद के साथ जाने से नीतीश का अत्यंत पिछड़ा वोट उनको छोड़ चुका है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि अति पिछड़ा वोट भाजपा से जुड़ा है। इस बार सिर्फ रैलियों में नहीं, बल्कि सीटों के बंटवारे में अति पिछड़ों को महत्व मिलने की संभावना है।