प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में महात्मा गांधी को लेकर कह दिया कि उनको दुनिया में कोई नहीं जानता था और जब ‘गांधी’ फिल्म बनी तब लोगों ने उनको जाना। उन्होंने कहा कि 75 साल में सरकारों को कुछ करना चाहिए था ताकि दुनिया गांधी को जानती। उनके इस बयान को बाद सोशल मीडिया में भूचाल आया है। राहुल गांधी ने मोदी पर तंज किया। कांग्रेस और तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने सोशल मीडिया में पोस्ट लिख कर गांधी की महानता के बारे में बताया।
सोशल मीडिया में भाजपा विरोधी जो इकोसिस्टम है उससे जुड़े लोगों की तो टाइमलाइन भर गई गांधी से जुड़ी सामग्री से। कोई खोज कर ले आया कि गांधी तीन बार टाइम मैगजीन के कवर पर छपे। गांधी गोलमेज सम्मेलन में गए तो कैसे चार्ली चैपलिन उनसे मिलने आए। गांधी के निधन पर महानतम वैज्ञानिक आइंस्टीन ने क्या कहा। गांधी के निधन की खबरें दुनिया के अखबार में कैसे छपीं और कैसे नेलसन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर गांधी को अपना आदर्श मानते थे आदि आदि।
अब सवाल है कि क्या ये सारे लोग सचमुच यह मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को इन सब बातों की जानकारी नहीं है? क्या मोदी ने अज्ञानवश यह बात कही है? जो ऐसा मानता है वह मूर्खों के स्वर्ग में है। मोदी को सब पता है कि गांधी कितने महान है और अपनी मृत्यु से पहले ही वे कितने मशहूर हो चुके थे। उनको यह भी पता है कि वे मशहूर थे तभी रिचर्ड एटनबरो उन पर फिल्म बनाने आए। उनको यह भी जानकारी है कि तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फिल्म बनाने के सरकार की ओर से पैसे दिलवाए। इसलिए मोदी के अज्ञान का तो यह मामला ही नहीं है।
विचार इस पर होना चाहिए कि उन्होंने ऐसा कहा क्यों? उनका या उनकी पार्टी का आगे क्या एजेंडा है और इसका क्या नुकसान हो सकता है? सब कुछ जानते बूझते अगर मोदी कह रहे हैं कि गांधी को कोई नहीं जानता था और फिल्म के जरिए लोगों ने जाना तो उसके पीछे कोई मंशा है, कोई योजना है। वह योजना क्या है? गांधी का महत्व कम करना तो एक बात स्पष्ट रूप से समझ में आती है, जो आरएसएस और भाजपा का पुराना एजेंडा है। एक मंशा अपने को बतौर भगवान स्थापित करने की भी है। वैसे गांधी के बरक्स पहले सावरकर को और अब अंबेडकर को आगे करने का जो प्रयास है वह भी एक कारण हो सकता है। गांधी जाति, धर्म, हिंसा और एकाधिकारवादी राजनीति के रास्ते में बाधा बनते हैं। तभी उनको निशाने पर लिया जा रहा है।