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मोदी का दुनिया में डंका ही डंका!

Disaster governmentImage Source: ANI

भाजपा के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी बार बार याद दिला रहे हैं कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने शपथ समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्योता नहीं दिया। वे यह भी कह रहे हैं कि विदेश मंत्री जयशंकर जो शपथ समारोह में जा रहे हैं वह भी न्योता भारतीय दूतावास को मिला था और जयशंकर राजदूतों के साथ 20वीं कतार में बैठेंगे। बहरहाल, वे जहां बैठें लेकिन एक तरफ यह नैरेटिव है कि भारत की कोई खास पूछ नहीं है और दूसरी ओर सोशल मीडिय में यह प्रचार है कि दुनिया में मोदी का डंका बज रहा है। जो मोदी से टकराएगा चूर चूर हो जाएगा का नारा लग रहा है। कहा जा रहा है कि जो मोदी से मिला उसके सितारे चमक गए और जो विरोधी हुआ वह निपट गया। इस प्रचार के पीछे तीन घटनाएं बताई जा रही हैं।

पहली घटना कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की प्रधानमंत्री पद से विदाई है। दूसरी घटना, हिंडनबर्ग रिसर्च का बंद होना और तीसरी घटना फेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा का माफी मांगना है। कहा जा रहा है कि यह मोदी की वजह से संभव हुआ। सबसे पहले मेटा की बात करें तो पिछले दिनों अमेरिका के सोशल मीडिया इन्फ्लूयंसर जो रोगन के पॉडकास्ट में मार्क जकरबर्ग ने कह दिया था कि पिछला साल काफी उथल पुथल वाला रहा और हर जगह सत्तारूढ़ नेताओं की हार हुई। उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन में हुए सत्ता परिवर्तन की मिसाल देते हुए भारत का भी जिक्र कर दिया। भारत में भी सत्तारूढ़ दल को हार मिली थी लेकिन सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ था। सो, तकनीकी रूप से उनकी बात आधी सही थी। लेकिन भारत सरकार पीछे पड़ गई। सूचना प्रसारण मंत्री को अपनी ताकत दिखाने का मौका मिल गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जकरबर्ग से अनजाने में यह गलती हुई थी। यह भी कह सकते हैं कि उनके लिए यह मैटर ही नहीं करता है कि भारत में किसकी सरकार आई और किसकी गई। फिर भी भारत सरकार ने कहा तो कंपनी ने माफी मांग ली। लेकिन यह ऐसा नहीं था कि जकरबर्ग ने किसी एजेंडे के तहत झूठ बोला था और सरकार ने जबरदस्ती माफी मंगवाई। यह तथ्यात्मक गलती थी, जिसे मेटा ने स्वीकार किया।

ऐसे ही हिंडनबर्ग रिसर्च के बंद होने का मामला है। सोचें, हिंडनबर्ग ने मोदी के खिलाफ या भारत सरकार के खिलाफ कुछ किया भी नहीं था। हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह की पोल खोली थी और आरोप लगाया था कि कंपनी शेयर बाजार में हेराफेरी करती है। बाद में कंपनी ने सेबी की प्रमुख माधवी पुरी बुच के बारे में खुलासा किया। लेकिन इसके बारे में कहा गया कि वह भारत विरोधी इकोसिस्टम का हिस्सा है, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने के लिए यह सब किया था। अब कंपनी ने यह कहते हुए अपना ऑपरेशन बंद किया है कि उसका मकसद पूरा हो गया है। इसका श्रेय भी मोदी को दिया जा रहा है। जस्टिन ट्रूडो की विदाई का श्रेय तो खैर मोदी को पहले से दिया जा रहा है। हालांकि उस मामले में भी अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत और इलॉन मस्क की सक्रियता का ज्यादा हाथ है। उलटे कनाडा के मामले में सख्त तेवर दिखाने वाले भारत ने अमेरिका में खालिस्तानी आतंकवादी की हत्या के प्रयास में अमेरिका के सामने जैसे रवैया अख्तियार किया है उससे डंका बजने की हकीकत सामने आती है।

By NI Political Desk

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