Parliament winter session बिल्कुल मध्य में है। सत्र के पहले दो हफ्ते में कोई खास कामकाज नहीं हुआ है क्योंकि कांग्रेस और उसके साथ विपक्षी गठबंधन की ज्यादातर पार्टियों ने अडानी के मसले पर चर्चा और जेपीसी जांच की मांग करके दोनों सदनों की कार्यवाही को बाधित किया है। शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर तक चलना है। इस लिहाज से आखिरी दो हफ्ते बहुत अहम हैं। इसमें दोनों सदनों में संविधान पर चर्चा होनी है। दोनों में दो दो दिन चर्चा होगी और उसके लिए तारीख तय कर दी गई। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने यह भी कह दिया है कि विपक्ष संसद की कार्यवाही में हिस्सा ले और अगर नहीं लेता है तो सरकार बिना बहस के ही विधेयक पास कराना शुरू करेगी। ध्यान रहे वक्फ बोर्ड बिल टल गया है फिर भी इस सत्र में कई अहम विधेयक पास होने हैं।
उससे पहले विपक्ष में बहुत साफ तौर पर विभाजन दिखने लगा है। विपक्षी पार्टियां बंट गई हैं। पहले ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने अपने को अडानी मामले से अलग किया औऱ कहा कि एक मसले पर वह संसद ठप्प करने के मूड में नहीं है। उसने राज्य के मुद्दे उठाए और मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा की मांग की। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने अपने को अलग किया। उसने भी अडानी मसले पर कांग्रेस के प्रदर्शन में हिस्सा लेने की बजाय सदन के अंदर संभल पर चर्चा में हिस्सा लेना जरूरी समझा। ध्यान रहे लोकसभा में विपक्षी पार्टियों में कांग्रेस के 99 सांसद हैं। उसके बाद सबसे ज्यादा 37 सासंद समाजवादी पार्टी के और 29 तृणमूल कांग्रेस के हैं। यानी इन दोनों पार्टियों के 66 सांसद हैं। अगर ये कांग्रेस के एजेंडे से अपने को अलग करते हैं तो विपक्ष का प्रदर्शन कमजोर पड़ेगा।
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सोमवार को संसद की कार्यवाही शुरू होने पर पता लगेगा कि विपक्षी पार्टियां किस तरह से व्यवहार करती हैं। पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस ने संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के चैम्बर में होने वाली बैठकों में भी हिस्सा लेना बंद कर दिया है। अब देखना होगा कि सोमवार को कार्यवाही शुरू होने से पहले होने वाली विपक्षी बैठक में समाजवादी पार्टी शामिल होती है या नहीं और अगर होती है तो उसका एजेंडा क्या होता है?
माना जा रहा है कि जिस तरह मुंबई में समाजवादी पार्टी ने उद्धव ठाकरे की शिव सेना के बाबरी विध्वंस पर दिए विज्ञापन के बाद अपने को विपक्ष से अलग किया है उसे देख कर लग रहा है कि दिल्ली में भी सपा के नेता उद्धव ठाकरे की शिव सेना के साथ दिखना नहीं चाहेंगे। अगर वे बैठक में आते भी हैं तो अपना एजेंडा लेकर शामिल होंगे।
तभी कांग्रेस के लिए संतुलन बनाना मुश्किल होगा। कांग्रेस नेता संसद की कार्यवाही इस बात पर बाधित करना चाहेंगे कि भाजपा के सांसदों ने राहुल गांधी को गद्दार कहा है और दावा किया है कि वे अमेरिका जाते हैं तो भारत विरोधी तत्वों से मिलते हैं। भाजपा ने अमेरिका पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोधी अभियान में शामिल होने का आरोप लगाया है। सोमवार को अडानी, संभल और मणिपुर के साथ इस मसले पर भी हंगामा होगा। यह देखना होगा कि कितनी विपक्षी पार्टियां इस मामले में कांग्रेस का साथ देती हैं।