एक एक करके सभी विपक्षी पार्टियों का अडानी प्रेम दिखने लगा है। संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस ने बड़े जोर शोर से अडानी का मुद्दा उठाया था। सत्र से ठीक पहले अमेरिका की अदालत में गौतम अडानी और सागर अडानी सहित आठ लोगों के खिलाफ फ्रॉड और घूसखोरी के आरोप तय होने के बाद कांग्रेस ने दबाव बनाया था कि संसद में इस पर चर्चा हो और इसकी जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी का गठन किया जाए। पहले हफ्ते तो सब ठीक ठाक रहा और सरकार पर दबाव भी रहा। लेकिन उसके बाद सब कुछ बिखरने लगा। एक एक करके पार्टियां अडानी मसले से कन्नी काटने लगीं। अब इस मुद्दे पर जो भी विरोध है वह सिर्फ कांग्रेस पार्टी का रह गया है।
कांग्रेस की सहयोगी शरद पवार की पार्टी ने भी इससे कन्नी काट ली है। शुक्रवार को पार्टी के सांसद अमोल काले ने कहा कि संसद में युवाओं और किसानों के मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किस उद्योगपति का किस नेता के साथ संबंध है और किसके साथ नहीं है, इस पर चर्चा की बजाय किसानों का मुद्दा उठाया जाना चाहिए। जाहिर है अमोल काले का किसान प्रेम अचानक ही उमड़ा है। अभी तक यानी तीन हफ्ते तक तो वे भी कांग्रेस से तालमेल करके अडानी के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल थे ही। बहरहाल, उनके नेता शरद पवार और गौतम अडानी के संबंध कैसे हैं यह सबको पता है। शरद पवार की एनसीपी से पहले समाजवादी पार्टी ने अडानी मसले से पल्ला झाड़ा और उससे पहले तृणमूल कांग्रेस ने भी दूरी बना ली थी। लेकिन सत्र का आखिरी हफ्ते आते आते अडानी मुद्दे की हवा निकल गई है।