देश के मतदाताओं ने विपक्ष की ताकत तो बढ़ा दी है लेकिन विपक्ष के पास आइडिया का घनघोर अभाव है। एक तरह से विचारहीन और दिवालिया विपक्ष है, जिसके पास जाति गणना और संविधान व आरक्षण बचावों का चुनावी नारा भर है। आम जनता से जुड़े किसी मुद्दे पर सरकार को घेरने, उसे कठघरे में खड़ा करने या उसे जन विरोधी फैसले बदलने के लिए मजबूर करने का कोई आइडिया विपक्ष के पास नहीं है। तभी जब जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा पर लगने वाले वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी को लेकर संसद में विपक्ष ने विरोध किया तो विपक्ष के ही एक सांसद ने तंज किया कि इसका आइडिया भी भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से मिला है। सोचें, कैसी विडम्बना है कि सरकार के मंत्री जनहित का मुद्दा उठा रहे हैं तब विपक्ष को उस पर आंदोलन करने की सूझ रही है!
असल में नितिन गडकरी ने इस साल आम बजट के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक चिट्टी लिखी, जिसमें उन्होंने जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा पर लगने वाला 18 फीसदी जीएसटी खत्म करने का अनुरोध किया। पहले विपक्षी पार्टियों ने इसका खूब मजाक बनाया और कहा कि भाजपा के अंदर खींचतान शुरू हो गई है। उनके हिसाब से यह भाजपा की अंदरूनी राजनीति का नतीजा था, जो गडकरी ने वित्त मंत्री को चिट्ठी लिखी। इसके एक हफ्ते के बाद विपक्ष के नेताओं को समझ में आया कि इस आइडिया में तो बड़ा दम है। तब जाकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को पता चला कि इस मद में सरकार ने 24 हजार करोड़ रुपए जीएसटी के रूप में वसूले हैं। सो, उन्होंने इसे मुद्दा बनाया और मंगलवार को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के तमाम सांसदों ने संसद भवन के परिसर में प्रदर्शन किया, नारे लगाए और सरकार से बीमा प्रीमियम पर लगने वाला जीएसटी हटाने की मांग की।
सवाल है कि यह विचार विपक्ष के नेताओं के दिमाग में पहले क्यों नहीं आय़ा? या जीवन बीमा व स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम पर मोटा जीएसटी वसूलने के अलावा सरकार बैंक खातों में न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने पर साढ़े आठ हजार करोड़ रुपया जुर्माने के तौर पर वसूल चुकी है उसका मुद्दा विपक्ष क्यों नहीं बना रहा है? क्या उसके लिए भी इंतजार किया जा रहा है कि सत्तापक्ष का कोई नेता वित्त मंत्री को चिट्ठी लिखे तो विपक्ष उसका मुद्दा बनाए? इसी तरह पिछले 10 साल में आम जनता को मिलने वाली कई तरह की राहतें खत्म कर दी गईं हैं। रेलवे में अलग अलग समूहों को मिलने वाली रियायतें हटा दी गई हैं। सत्ता पक्ष की ताकत बढ़ी है तो वह ऐसे मुद्दे उठा कर इन पर आंदोलन कर सकता है। लेकिन विपक्ष अभी उसी मुद्दे पर अटका हुआ है, जिसके दम पर लोकसभा चुनाव लड़ा और पहले दो बार के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया। उसे समझना चाहिए कि जनता ने उसे अपनी मुश्किलों से निजात दिलाने के लिए मजबूत किया है।