यह भारतीय राजनीति की विडंबना है कि जब भी राजनीति में परिवारवाद की बात होती है, जातिवाद की बात होती है या दागी नेताओं की बात होती तो सिर्फ उत्तर भारत की हिंदी की चर्चा होती है। सहज रूप से यह मान लिया जाता है कि राजनीति की ये बुराइयां सिर्फ उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों में हैं। मीडिया में भी इसी तरह का एकतरफा नैरेटिव बनाया जाता है। हकीकत यह है कि भारतीय राजनीति की ये बुराइयां समान रूप से पूरे देश में हैं और हर पार्टी के अंदर है। बिहार और उत्तर प्रदेश से ज्यादा जातिवाद तमिलनाडु या गुजरात में होता है और बिहार, उत्तर प्रदेश से ज्यादा परिवारवाद भी दक्षिण के बड़े राज्यों से लेकर महाराष्ट्र तक में होता है। Maratha leaders familyism
महाराष्ट्र में जिस तरह से नेता खुल कर अपने परिवार के सदस्यों को आगे बढ़ा रहे हैं और खुल कर परिवारवाद को स्वीकार कर रहे हैं उसकी मिसाल मुश्किल है। मजेदार बात यह है कि वे इसे लेकर बैकफुट पर नहीं हैं और न किसी तरह के अपराध बोध से ग्रसित हैं। शिव सेना के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सीना ठोक कर कहा है कि वे आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा- विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि मैं अपने बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहता हूं। यह पूरी तरह से सही है।
उद्धव ठाकरे इस मामले में अकेले नहीं हैं। सबसे बड़े मराठा क्षत्रप शरद पवार ने शनिवार को अपने लोकसभा उम्मीदवारों की घोषणा शुरू की तो सबसे पहले अपनी बेटी सुप्रिया सुले के नाम का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि सुप्रिया सुले फिर से बारामती सीट से चुनाव लड़ेंगी। पवार सीनियर ने अपनी बेटी को शानदार सांसद बताते हुए उनकी तारीफ की। दूसरी ओर इसी सीट से राज्य के उप मुख्यमंत्री और असली एनसीपी के नेता अजित पवार ने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को चुनाव लड़ाने की तैयारी शुरू की है। ध्यान रहे अजित पवार ने पिछले लोकसभा चुनाव में बेटे पार्थ पवार को भी चुनाव लड़ाया था लेकिन वे हार गए थे। अजित पवार परिवारवाद के खिलाफ अभियान छेड़ने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजपा के सहयोगी हैं। Maratha leaders familyism
भाजपा के एक दूसरे सहयोगी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं, जिनके बेटे श्रीकांत शिंदे कल्याण सीट से लोकसभा के सांसद हैं। जब से अजित पवार की पार्टी एनडीए में शामिल हुई है तब से एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी की कुछ सीटों को लेकर आशंका में हैं लेकिन उनका पूरा प्रयास इस बात पर है कि किसी तरह से कल्याण की सीट उनके खाते में रहे ताकी वे अपने बेटे को फिर से सांसद बना सकें। छगन भुजबल भी महाराष्ट्र की भाजपा समर्थित सरकार में मंत्री हैं। वे पिछड़ी जाति की राजनीति करते हैं लेकिन असल में उन्होंने सारी जिंदगी अकूत संपत्ति जमा करने और बेटे पंकज व भतीजे समीर भुजबल का राजनीतिक करियर बनाने में लगाया है। नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री नारायण राणे ने भी यही काम किया है।
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