एक देश, एक चुनाव का फैसला अभी तुरंत नहीं होने जा रहा है। इस साल शीतकालीन सत्र में विधेयक आएगा, इसको लेकर भी कोई पक्के तौर पर दावा नहीं कर रहा है। अगर बिल आ भी जाता है तो यह तय माना जा रहा है कि उसे संयुक्त संसदीय समिति में भेजा जाएगा। कुल मिला कर स्थिति यह है कि सरकार ने ठहरे हुए पानी में एक पत्थर फेंक कर यह देखने का प्रयास किया है कि कितनी लहरें उठती हैं। यानी उसने विपक्ष की ताकत का आकलन करने के लिए यह दांव चला है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी की जिन सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार किया उन्हें कोविंद कमेटी ने मार्च में ही राष्ट्रपति को सौंप दिया था। सरकार ने इसे मंजूर करने में छह महीन से ज्यादा का समय लिया। उस सिफारिश के आधार पर बिल तैयार नहीं किया गया है और न यह कहा गया है कि सरकार बिल कब तक पेश करेगी। सिर्फ सिफारिश स्वीकार करके हलचल मचाई गई है।
असल में इस विचार के लागू करने के लिए संविधान में कई संशोधन करने होंगे, जिनमें कुछ संशोधनों को देश के आधे राज्यों की विधानसभा से मंजूर कराना होगा और संसद के दोनों सदनों में अलग अलग दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा। लेकिन सरकार के पास संसद में इस तरह का बहुमत नहीं है। उसके पास लोकसभा में साधारण बहुमत है और राज्यसभा में वह जुगाड़ करके साधारण बहुमत हासिल कर सकती है। दो तिहाई बहुमत उसे विपक्ष की कई बड़ी पार्टियों के साथ आए बगैर नहीं हासिल होगा। इसका मतलब है कि मौजूदा लोकसभा में जब तक विपक्ष के साथ सहमति नहीं बनती है तब तक इसे पास नहीं कराया जा सकता है। तभी कैबिनेट के फैसले के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सभी पार्टियों के साथ आम सहमति बनाने की बात कही।
बहरहाल, अभी संसद में संख्या का जो हिसाब है वह सरकार के पक्ष में नहीं है। लोकसभा में सरकार के 293 सांसद हैं। लेकिन इनमें से 22 सांसदों वाली पार्टियों ने रामनाथ कोविंद कमेटी के सामने एक देश, एक चुनाव के विचार का विरोध किया था या तटस्थ रहे। यानी सरकारी पक्ष के सिर्फ 271 सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने इस विचार का समर्थन किया था। फिर भी अगर मान लें कि सरकार की संख्या 293 तब भी यह दो तिहाई बहुमत से बहुत कम है। दो तिहाई बहुमत के लिए सरकार को 362 सांसदों के समर्थन की जरुरत है। यानी तो सरकार 69 सांसदों का इंतजाम करे या यह इंतजाम करे कि वोटिंग के समय उसके सारे सांसद मौजूद रहें और विपक्ष के 103 सांसद गैरहाजिर हो जाएं। अगर वोटिंग के समय 439 सांसद ही लोकसभा में रहते हैं तब 293 के बहुमत से सरकार संशोधन करा पाएगी।
इसी तरह राज्यसभा में भी भाजपा और एनडीए की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। मनोनीत सांसदों को छोड़ कर उसके पास अभी 115 सांसद हैं। फिलहाल राज्यसभा की क्षमता 234 सांसदों की है। इस लिहाज से सरकार बहुमत से दो कम है। अगर मनोनीत श्रेणी की सभी सीटें भर जाती हैं और जम्मू कश्मीर के भी चार सांसद आ जाते हैं तो बहुमत का आंकड़ा 122 का होगा। लेकिन संविधान संशोधन के लिए सरकार को 164 सांसदों की जरुरत है। विपक्ष के पास इस समय 85 सांसद हैं। सरकार को या तो 164 की संख्या पूरी करनी होगी या विपक्ष के आधे सदस्यों को गैरहाजिर करना होगा। यह संभव नहीं दिख रहा है। तभी एक देश, एक चुनाव अभी दूर की कौड़ी है।