अब यह लगभग तय लग रहा है कि 2029 में लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव नहीं होने जा रहे हैं। यानी एक ‘देश, एक चुनाव’ का कानून 2029 में लागू नहीं होगा। अगर बहुत अच्छी स्थितियां रहीं तो 2034 में एक साथ चुनाव हो सकते हैं। हालांकि उसमें भी बहुत अगर मगर हैं। जहां तक लोकसभा की मौजूदा स्थिति का सवाल है तो इसमें सरकार के लिए ‘One nation one election Bill’ का बिल पास कराना संभव नहीं है। भले 32 पार्टियों ने बिल का समर्थन किया और सिर्फ 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया लेकिन 32 पार्टियां मिल कर बिल पास कराने लायक बहुमत नहीं जुटा पा रही हैं।
बिल पास कराने की एक ही स्थिति है कि संयुक्त संसदीय समिति में इस पर विचार के दौरान सहमति बने, जिसकी संभावना कतई नहीं दिख रही है। सो, अगर 2029 से पहले यह बिल पास नहीं होता है तो उस चुनाव में क्या स्थिति बनती है उस पर इस कानून का भविष्य निर्भर करेगा। यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि एक बार बिल पास होने के बाद चुनाव आयोग को भी तैयारियों के लिए कम से कम दो साल का समय चाहिए होगा।
बहरहाल, संविधान के अनुच्छेद 368 और संसद के संचालन के नियम 157 व 158 में संविधान संशोधन और उसके लिए वोटिंग के प्रावधान किए गए हैं। इसके मुताबिक सरकार की ओर से पेश किए 129वें संविधान संशोधन बिल को पास कराने के लिए दोनों सदनों में अलग अलग दो तिहाई बहुमत की जरुरत होगी। संविधान के प्रावधानों के मुताबिक संविधान संशोधन का बिल साझा सत्र में पास नहीं होग।
इसी तरह दोनों सदनों की कुल संख्या के बहुमत से बिल पास होना चाहिए और साथ ही सदन में मौजूद व वोट देने वाले सदस्यों की दो तिहाई संख्या से बिल पास होना चाहिए। इसका मतलब है कि लोकसभा में किसी भी स्थिति में यानी सदन में चाहे जितने भी सदस्य मौजूद हों, बिल के समर्थन में 272 से कम वोट नहीं होना चाहिए। सरकार यह शर्त तो आसानी से पूरा कर देगी लेकिन सदन में मौजूद और वोट करने वालों का दो तिहाई समर्थन सरकार नहीं जुटा पाएगी। One nation one election Bill
लोकसभा में दो तिहाई समर्थन का मतलब है कि 362 सांसदों की जरुरत होगी बिल पास कराने के लिए। इस समय एनडीए के पास कुल 293 सांसदों का समर्थन है। एनडीए से बाहर की जो पार्टियां एक साथ चुनाव के समर्थन में हैं उनकी संख्या कोई खास नहीं है। जैसे ओडिशा और आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ ही चुनाव होता है। सो, अगर बीजू जनता दल या वाईएसआर कांग्रेस जैसी गैर एनडीए पार्टियां बिल का साथ दें, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि बीजद का लोकसभा में कोई सदस्य नहीं है और वाईएसआर कांग्रेस के सिर्फ चार सांसद हैं।
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इसी तरह अगर भारत राष्ट्र समिति साथ दे तो उसके पास भी कोई सांसद नहीं है। अगर किसी तरह से उद्दव ठाकरे को भाजपा तैयार करती है तब भी सिर्फ नौ की संख्या का इजाफा होगा। ध्यान रहे विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के 204 सांसद हैं और ममता बनर्जी के 29 सांसद हैं। सो, अकेले ‘इंडिया’ ब्लॉक इस बिल को रोक सकता है। ममता बनर्जी भी उसका साथ दे रही हैं इसलिए सरकार के लिए इसे पास कराना संभव नहीं होगा। राज्यसभा में भी उसे 162 वोट की जरुरत होगी, जिसे जुटाना संभव नहीं होगा।