राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

भाजपा और बीजद की मिलीजुली लड़ाई?

भाजपा

ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी को पिछली बार छप्पर फाड़ सीटें मिली थीं। वह एक सीट से बढ़ कर आठ सीट पर पहुंच गई थी। लेकिन लोकसभा के साथ ही हुए विधानसभा चुनाव में तमाम जोर लगाने के बाद भी भाजपा को सिर्फ 23 ही सीटें मिली थीं। तभी नतीजे के बाद कहा गया था कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भाजपा को लोकसभा चुनाव में चुनाव में थोड़ी बढ़त लेने दी थी। यहां तक कहा गया था कि नवीन पटनायक ने मदद करके भाजपा को आठ सीटें जितवाई थीं। इसका कारण यह बताया जाता है कि नवीन पटनायक अब भी भाजपा की बजाय कांग्रेस को लेकर ज्यादा आशंकित रहते हैं। उनको लगता है कि सचमुच त्रिकोणात्मक लड़ाई हुई तो कांग्रेस मजबूत हो सकती है और अगर कांग्रेस मजबूत हो गई तो उसका आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक का वोट उसकी ओर लौट सकता है। तभी एक योजना के तहत वे प्रदेश की राजनीति में भाजपा को मजबूत बनाए रखते हैं।

तभी सवाल है कि क्या इस बार भी ओडिशा में भाजपा और बीजू जनता दल के बीच मिलीजुली लड़ाई हो रही है? क्या इस बार भी पिछली बार वाले फॉर्मूले के तहत लोकसभा चुनाव में नवीन पटनायक भाजपा की मदद करके उसे कुछ सीटें जितवा देंगे? जानकार सूत्रों का कहना है कि इस बार भाजपा के खिलाफ लोकसभा चुनाव में बीजू जनता दल ने कमजोर उम्मीदवार उतारे हैं और बदले में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कमजोर उम्मीदवार दिए हैं। फर्क इतना है कि पिछली बार बीजद ने भाजपा को आठ सीटें जीतने में मदद की थी और खुद 12 सीटें जीती थी। इस बार भाजपा कुछ ज्यादा सीटों पर जीत सकती है। बताया जा रहा है कि इसी फॉर्मूले पर बात बनी है कि इस बार भाजपा लोकसभा की 12 से 14 सीटें जीते। तभी इतनी सीटों पर बीजद ने कमजोर उम्मीदवार दिया है।

गौरतलब है कि चुनाव की घोषणा से पहले भाजपा और बीजद के बीच तालमेल की बात लगभग पक्की हो गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक दोनों रैलियों में एक दूसरे को दोस्त बता रहे थे। नवीन पटनायक के करीबी सहयोगी वीके पांडियन दिल्ली में सीटों की बातचीत कर रहे थे। लेकिन अचानक बातचीत बंद हो गई और दोनों ने अलग अलग लड़ने का ऐलान किया। जानकार सूत्रों के मुताबिक भाजपा 12 से 14 लोकसभा सीट मांग रही थी और 50 से कम विधानसभा सीट लेने पर राजी नहीं थी। तभी औपचारिक तालमेल की बजाय नूरा कुश्ती का फैसला हुआ। इसके पीछे एक कारण यह भी था कि दोनों पार्टियों को लगा कि तालमेल करके लड़ने से विपक्ष का स्पेस कांग्रेस के पास चला जाएगा और वह मजबूत हो जाएगी। दूसरा कारण यह था कि बीजू जनता दल विधानसभा में भाजपा को ज्यादा मजबूत नहीं करना चाहती है और न सरकार बनाने के लिए उस पर निर्भर होना चाहती है। इसलिए दोनों अलग अलग लड़ रहे हैं। फिर भी दोनों पार्टियों की ओर से एक दूसरे पर तीखे हमले नहीं हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ओडिशा सरकार को अस्त होते हुए बता रहे हैं लेकिन जैसे दूसरी विपक्षी पार्टियों पर हमले करते हैं उस तरह का हमला नहीं कर रहे हैं। नतीजों के बाद राज्य में ज्यादा दांवपेंच होने की संभावना है क्योंकि नवीन पटनायक अपना उत्तराधिकारी तय करने वाले हैं। अगर वे पांडियन को बनाते हैं तो भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मौका बनेगा।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें