भारत वैसे भी कबीर की उलटबांसियों वाला देश रहा है। यहां हर चीज में विरोधाभास दिखाई देता है। यहां सिर्फ नेता ही नहीं, आम नागरिक भी जो कहता है या मानता है उसे करने में श्रद्धा नहीं रखता है। इसलिए सरकारें भी ऐसा ही करती हैं। अभी नीति आयोग ने एक आंकड़ा जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि भारत में पिछले नौ साल में 25 करोड़ लोग गरीबी से निकल गए हैं और अब सिर्फ 11.28 फीसदी ही गरीब बचे हैं। यह अलग बात है कि देश में 70 फीसदी के करीब आबादी को पांच किलो अनाज दिया जा रहा है ताकि वे दो समय का भोजन कर सकें। नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक अगर गरीब सिर्फ 11.28 फीसदी हैं तो बाकी मुफ्त अनाज पाने वाले करीब 60 फीसदी मध्य वर्ग के हैं या अमीर हैं!
बहरहाल, असली विरोधाभास यह नहीं है। असली विरोधाभास यह है कि भारत सरकार ने दावा किया है स्वच्छता अभियान इतना सफल हुआ है कि देश खुले में शौच से मुक्त हो गया है। यह आधिकारिक घोषणा है कि भारत खुले में शौच से मुक्त देश है यानी कोई खुले में शौच के लिए नहीं जाता है। लेकिन नीति आयोग ने कहा है कि 31 फीसदी यानी करीब 43 करोड़ लोगों के पास घरों में शौचालय नहीं है। इसी तरह नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 44 फीसदी लोगों के पास रसोई गैस का कनेक्शन नहीं है। सोचें, उज्ज्वला योजना की 10 करोड़वीं लाभार्थी के घर तो पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही चाय पीने गए थे। यानी 50 करोड़ लोगों तक तो मोदी सरकार ने रसोई गैस का कनेक्शन पहुंचाया है। उसके बाद भी 44 फीसदी यानी 60 करोड़ लोगों के पास अब भी रसोई गैस का कनेक्शन नहीं है। तो फिर बचे ही कितने लोग, जिनके पास 2014 से पहले एलपीजी का कनेक्शन था?