एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर नए आपराधिक कानूनों पर चिंता व्यक्त की है। गिल्ड ने पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग कर उत्पीड़न और धमकी के तौर पर उनके इस्तेमाल करने की आशंका भी जताई है।नए कानून, कानून प्रवर्तन एजेंसियों की शक्तियों का और बढ़ाएंगे। इसने पत्रकारिता के काम के संदर्भ में पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज किए जाने पर उनके लिए अतिरिक्त सुरक्षा की ज़रूरत पर जोर दिया।
ज्ञात हो कि इसी महीने से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) ने क्रमशः ब्रिटिश कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है।
पत्र में कहा गया है, ‘हम विशेष रूप से इन मुद्दों को इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि हमें डर है कि इन सभी प्रावधानों का पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसा कि अतीत में आईपीसी और सीआरपीसी के तहत हुआ है। पत्र में कहा गया है, ‘हमारा यह भी मानना है कि जिस तरह से आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल पत्रकारों के खिलाफ उत्पीड़न और धमकी के साधन के रूप में किया गया है, उसके मद्देनजर एफआईआर दर्ज करने में पत्रकारिता संबंधी अपवाद का एक वैध मामला है।’
गिल्ड ने एक ऐसी व्यवस्था का सुझाव दिया है जिसके तहत मीडिया के किसी सदस्य के खिलाफ ऐसी किसी शिकायत की समीक्षा एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी द्वारा की जाए तथा उसे भारतीय प्रेस परिषद के संज्ञान में लाया जाए ताकि इस बारे में राय ली जा सके कि क्या शिकायत/सूचना की आगे की जांच, मीडिया के सदस्य के रूप में कथित अपराधी की पेशेगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादीको प्रभावित करेगी।
पत्र में कहा गया है, ‘स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र की पहचान है और अपने कर्तव्य के दौरान किए गए कार्यों के लिए उसे झूठे अभियोजन से संरक्षण मिलना चाहिए।’