तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि और राज्य की डीएमके सरकार का विवाद खत्म ही नहीं हो रहा है। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद दोनों के बीच नया विवाद शुरू हो गया है। राज्यपाल आरएन रवि ने डीएमके विधायक के पोनमुडी को राज्य सरकार में मंत्री पद की शपथ दिलाने से इनकार कर दिया है। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला चल रहा था, जिसमें पिछले साल यानी 2023 में हाई कोर्ट ने उनको दोषी ठहरा दिया और सजा सुना दी, जिसके बाद उनको उच्च शिक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी है। राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन चाहते हैं कि उन्हें फिर से मंत्री बनाया जाए लेकिन राज्यपाल रवि ने के पोनमुडी को शपथ दिलाने से इनकार कर दिया है।
राज्यपाल रवि ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने विधायक के पोनमुडी की सजा पर सिर्फ रोक लगाई है, उनकी सजा समाप्त नहीं की है इसलिए उनको शपथ दिलाना संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ होगा। सवाल है कि इसमें संवैधानिक नैतिकता कहां से आ गई? राज्यपाल का काम कानूनी प्रावधानों को पूरा करना है। अगर कोई नेता विधायक रहने के योग्य है और विधायक है तो मुख्यमंत्री उसे मंत्री बना सकते हैं। उसे राज्यपाल नहीं रोक सकते हैं। विधायक होने से अयोग्य ठहराए गए किसी व्यक्ति को मंत्री नहीं बनाया जा सकता है। लेकिन अगर वह व्यक्ति विधायक है तो उसे मंत्री बनने से नहीं रोका जा सकता है। जाहिर है कि राज्यपाल की मंशा किसी तरह की नैतिकता की स्थापना नहीं है, बल्कि सत्तारूढ़ डीएमके को कठघरे में खड़ा करना और उसका नुकसान करने का है। इसका फायदा किसको होगा, यह कहने की बात नहीं है।