मेडिकल में दाखिले की परीक्षा में हुई गड़बड़ियों पर कोई भी ईमानदारी से काम करता नहीं दिख रहा है। परीक्षा कराने वाली एजेंसी यानी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी, एनटीए का रवैया बहुत खराब है तो सरकार का शुरू से रवैया एनटीए को बचाने का दिख रहा है। इतना ही नहीं केंद्र और बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी यानी भाजपा के नेताओं की बातों में भी विरोधाभास दिख रहा है। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा दावा कर रहे हैं कि मेडिकल में दाखिले के लिए हुई इस साल की प्रवेश परीक्षा का पेपर लीक हुआ था। इसमें उनको फायदा दिख रहा है कि बिहार के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव के पीए प्रीतम कुमार के साथ एक आरोपी की नजदीकी है।
लेकिन दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी की केंद्र सरकार दावा कर रही है कि पेपर लीक नहीं हुआ था। सोचें, क्या इस तरह के रवैए से इस पूरे मामले की जांच और फैसले प्रभावित नहीं होंगे? यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि जिन तीन राज्यों में पेपर लीक या गड़बड़ी के तार जुड़े दिख रहे हैं उन तीनों राज्यों में भाजपा सरकार में है। बिहार, हरियाणा और गुजरात में गड़बड़ी के सर्वाधिक मामले हैं।
बहरहाल, केंद्र सरकार नीट की परीक्षा रद्द कराने के पक्ष में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही है लेकिन वहां भी ऐसा ही रुख दिख रहा है। अदालत ने कम से कम तीन बार सुनवाई में साफ कर दिया कि वह दाखिले के लिए होने वाली काउंसिलिंग पर रोक नहीं लगा रही है। यानी पहले से तय तारीख के हिसाब से छह जुलाई से काउंसिलिंग शुरू होगी। इसके दो दिन बाद आठ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका पर सुनवाई होनी है, जिसमें परीक्षा रद्द करने और सीबीआई जांच के आदेश देने की मांग की गई है। सोचें, अगर सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसे सबूत पेश किए गए, जिनसे पता चले कि पेपर लीक हुआ है उसके बाद क्या होगा? हजारों बच्चों की काउंसिलिंग होने के बाद परीक्षा रद्द होना उनके लिए किस तरह का सदमा लगेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
सरकार की यह चिंता समझ में आती है कि अगर कुछ चुनिंदा परीक्षा केंद्रों पर पेपर लीक की खबर है और कुछ चुनिंदा छात्रों को ही पेपर मिले हैं तो उनकी वजह से 24 लाख बच्चों की परीक्षा रद्द करना ठीक नहीं होगा। लेकिन इससे पहले जब एनटीए का गठन नहीं हुआ था और सीबीएसई परीक्षा कराती थी तब 2004 भी मेडिकल दाखिले का पेपर लीक हुआ था और जांच से पता चला कि सिर्फ 13 छात्रों को पेपर मिला था फिर भी परीक्षा रद्द कर दी गई थी। इसी तरह नरेंद्र मोदी की सरकार के समय 2015 में पेपर लीक हुआ तो सिर्फ 44 छात्रों को पेपर मिलने की बात थी फिर भी परीक्षा रद्द कर दी गई थी। इसके पीछे तर्क यह था कि परीक्षा की पवित्रता भंग हुई है इसलिए नए सिरे से परीक्षा कराई जाएगी। इस बार कम से कम तीन राज्यों में पेपर लीक होने के अलावा परीक्षा में चोरी कराने, बाद में आंसर शीट भरने जैसी अनेक गड़बड़ियों की सूचना मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परीक्षा की पवित्रता भंग हुई है फिर भी परीक्षा रद्द नहीं की जा रही है। इसके उलट यूजीसी नेट की परीक्षा में पेपर लीक होने की खबर नहीं थी, डार्क वेब पर पेपर उपलब्ध होने की बार साइबर यूनिट ने दी थी और इस आधार पर नौ लाख छात्रों की परीक्षा रद्द कर दी गई।