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पेपर लीक कानून लागू करने में देरी क्यों हुई?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हैं कि उनकी सरकार कठोर फैसले लेने और उसे लागू करने वाली सरकार है। लेकिन वही सरकार कानून बना देती है और उसे लागू करने में महीनों, बरसों लगा देती है। कानून बनने के चार साल से ज्यादा समय बीतने के बाद मोदी सरकार ने संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए को लागू किया था। उसी तरह से पेपर लीक रोकने का कानून बनने के चार महीने बाद उसे लागू किया गया है। सवाल है कि सरकार इस कानून को बनाने के बाद लागू करने के लिए किस बात का इंतजार कर रही थी? क्या इस बात का इंतजार किया जा रहा था कि कोई बड़ी घटना हो, लाखों बच्चों का भविष्य अधर में फंसे और देश भर में हंगामा हो तभी इस कानून को लागू करेंगे?

गौरतलब है कि पब्लिक एग्जामिनेशन (प्रीवेंशन ऑफ अनफेयर मीन्स) एक्ट इस साल 12 फरवरी को बन गया था। छह फरवरी को लोकसभा और नौ फरवरी को राज्यसभा ने इसे मंजूरी दी थी और 12 फरवरी का राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन गया था। लेकिन सरकार ने इस कानून को लागू करने के नियम नहीं बनाए। इस कानून में पेपर लीक करने वालों के लिए तीन से पांच साल की सख्त सजा और एक करोड़ रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। अब जबकि मेडिकल में दाखिले की नीट-यूजी परीक्षा के साथ एक के बाद एक कई परीक्षाओं के पेपर लीक होने की खबरें आई हैं और पूरे देश में विवाद शुरू हुआ तो सरकार ने आनन-फानन में नियम भी बना दिए और इसे लागू भी कर दिया। 21 जून को आधी रात को इस कानून को लागू करने की अधिसूचना जारी हुई। इस कानून के नहीं होने की वजह से राज्यों में पुलिस ने पेपर लीक के ताजा मामले भी आईपीसी की अलग अलग धाराओं के तहत ही दर्ज किए हैं।

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