मेडिकल में दाखिले के लिए हुई नीट यूजी की परीक्षा में गड़बड़ियों और कंफ्यूजन की कितनी परतें हैं, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। एक एक करके परतें खुल रही हैं। ऐसा लग रहा है कि पेपर लीक और परीक्षा में धांधली का दायरा अखिल भारतीय था। लेकिन उससे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि सरकार के अलग अलग विभागों में इसे लेकर तालमेल की घनघोर कमी है। एक मंत्रालय या एक विभाग क्या कर रहा है वह दूसरे को पता नहीं है या पता है तो उसने उसकी खामियों को दूर करने की जरुरत नहीं समझी। यह भी देखने को मिल रहा है, जब जिसकी बारी आ रही है तभी वह प्रतिक्रिया दे रहा है और उससे पहले वह मुंह पर टेप लगा कर बैठा रह रहा है।
ताजा मिसाल नीट यूजी की परीक्षा पास करने वाले छात्रों की काउंसिलिंग का है। पूरे देश को पता था कि छह जुलाई से काउंसिलिंग शुरू होने वाली है। उतीर्ण छात्र इसकी तैयारी कर रहे थे तो नीट की परीक्षा रद्द करने की मांग करने वाले संगठन सुप्रीम कोर्ट में ऐड़ी चोटी का जोर लगाए हुए थे कि काउंसिलिंग टाल दी जाए। परीक्षा का आयोजन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए ने खुद सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि काउंसिलिंग छह जुलाई से होगी। सर्वोच्च अदालत ने परीक्षा रद्द करने की याचिताओं पर सुनवाई के लिए आठ जुलाई की तारीख तय की है। उसने पिछले महीने यानी जून में कई बार कहा कि काउंसिलिंग नहीं रोकी जाएगी।
लेकिन अब पता चला है कि काउंसिलिंग की तो तारीख ही तय नहीं हुई थी। यह बात स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताई है क्योंकि काउंसिलिंग कराने का जिम्मा उसका है। ऐसा लग रहा है कि स्वास्थ्य मंत्रालय अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। उसके अधिकारी रोज सुन रहे थे कि छह जुलाई से काउंसिलिंग है लेकिन उन्होंने पहले यह स्पष्टीकरण नहीं दिया कि ऐसी कोई तारीख तय नहीं हुई है। जब छह जुलाई की तारीख बीत गई और काउंसिलिंग नहीं शुरू हुई तब स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि ऐसी कोई तारीख तय नहीं हुई थी। तब सवाल है कि एनटीए को कहां से छह जुलाई की तारीख का पता चला था और क्या उसने सुप्रीम कोर्ट में गलतबयानी की है? अगर ऐसा है तो उसके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला बन सकता है।
इससे भी हैरान करने वाली बात यह पता चली है कि अभी तक स्वास्थ्य मंत्रालय को पता नहीं चल सका है कि इस साल मेडिकल में अंडर ग्रेजुएट कोर्स की कितनी सीटें हैं यानी काउंसिलिंग के बाद कितने छात्रों का चयन करना है। यह बताने का काम नेशनल मेडिकल कौंसिल यानी एनसीएम को करना होता है। सोचें, नतीजे आए हुए एक महीने से ज्यादा हो गए। अभी तक न सीटों की संख्या अधिसूचित हुई है और न काउंसिलिंग के लिए तारीख तय हुई है। यह भी कितनी हैरान करने वाली बात है कि परीक्षा से लेकर दाखिले का काम दो अलग अलग मंत्रालय कर रहे हैं और दोनों मंत्रालयों या उनके साथ काम करने वाली एजेंसियों के बीच कोई तालमेल नहीं है। शिक्षा मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, एनटीए और एनसीएम ने मिल कर लाखों छात्रों और लाखों परिवारों को अधर में लटका रखा है।