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संसद के बाहर गठबंधन की चुनौती

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विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ संसद के अंदर एकजुट दिख रहा है। पहले सत्र के पहले दिन से सारे विपक्षी सांसद एक साथ मिल कर अपने अपने तरीके से सरकार को निशाना बना रहे हैं। लेकिन असली परीक्षा संसद से बाहर होनी है। राज्यों के चुनाव में और राज्यों की राजनीति में गठबंधन के सामने कई चुनौतियां अभी से दिखने लगी हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि विपक्षी गठबंधन के अंदर एक गठबंधन, जो पहले से काम कर रहा था, एक बार फिर सक्रिय हो गया है। कांग्रेस के लिए इससे निपटना आसान नहीं होगा। गठबंधन के अंदर के गठबंधन में समाजवादी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टियां, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी शामिल हैं।

सबसे ताजा मामला दिल्ली की मंत्री आतिशी का पानी के मसले पर अनशन है। संसद सत्र के बीच आतिशी अनशन पर बैठीं लेकिन हरियाणा ने दिल्ली के लिए पानी नहीं छोड़ा। इस बीच अनशन के चार दिन बाद उनकी तबियत बिगड़ गई और उनको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और सीपीएम की नेता बृंदा करात ने अस्पताल में जाकर आतिशी का समाचार लिया। तृणमूल कांग्रेस ने भी उनके अनशन को समर्थन दिया। लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने आतिशी के अनशन को नाटक करार दिया। जाहिर है कि कांग्रेस का स्टैंड गठबंधन की राजनीति से नहीं, बल्कि दिल्ली में होने वाले चुनाव से तय हो रहा है। अगले साल जनवरी में दिल्ली में चुनाव है और दोनों पार्टियों को एक दूसरे के खिलाफ लड़ना है। ध्यान रहे दिल्ली और हरियाणा में लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां साथ मिल कर लड़ी थीं लेकिन इस साल हरियाणा के चुनाव में भी तालमेल संभव नहीं है। दोनों की लड़ाई चलती रहेगी और उसमें गठबंधन की पार्टियां अपनी सुविधा के हिसाब से बंटी रहेंगी।

दो साल के बाद केरल में विधानसभा का चुवाव होना है, जहां कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ के बीच चुनाव है। उससे पहले राहुल गांधी की खाली की हुई वायनाड सीट पर उपचुनाव होगा, जिसमें कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा लड़ेंगी। राहुल के खिलाफ सीपीआई ने पार्टी के महासचिव डी राजा की पत्नी एनी राजा को उम्मीदवार बनाया था। हो सकता है कि प्रियंका के खिलाफ भी वे चुनाव लड़ें। लेफ्ट किसी हाल में कांग्रेस को वॉकओवर देने के मूड में नहीं है क्योंकि लगातार दो बार केरल विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस इस बार जीत की उम्मीद कर रही है। सो, संसद में चाहे जैसी एकजुटता दिखे, बाहर कांग्रेस और लेफ्ट की लड़ाई चलती रहेगी। आम आदमी पार्टी के मसले पर भी लेफ्ट, तृणमूल और समाजवादी पार्टी का समर्थन कांग्रेस के साथ नहीं होगा। ध्यान रहे दो साल में पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होना है। पिछले दिनों कांग्रेस नेता पी दंबरम ने कोलकाता जाकर ममता बनर्जी से मुलाकात की थी और संसद में कांग्रेस के साथ सहयोग के मसले पर बात की थी। संसद में हो सकता है कि सहयोग रहे लेकिन प्रदेश की राजनीति में दोनों पार्टियां आमने सामने रहेंगी।

By NI Political Desk

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