चुनावी राजनीति में भाजपा का सबसे बड़े एडवांटेज नरेंद्र मोदी हैं। इसके अलावा हर मामले में विपक्षी पार्टियां भारी हैं। राज्यों में भाजपा नेताओं से ज्यादा मजबूत नेता कांग्रेस या दूसरी प्रादेशिक पार्टियों में हैं। उत्तर प्रदेश, असम जैसे एक दो राज्य छोड़ दिए जाएं तो हर राज्य में भाजपा के मुख्यमंत्री या प्रदेश के दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्यादा बड़ा नेता विपक्ष का है। तभी केंद्र सरकार से लेकर भाजपा तक का पूरा प्रचार सिर्फ मोदी के चेहरे पर केंद्रित रहता है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पार्टी यह एडवांटेज गंवा रही है। जिस तरह विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने 38 पार्टियां जुटाईं और उसके लिए जिस तरह के समझौते किए जाने की खबरें आईं उससे यह मैसेज गया कि भाजपा कमजोर हुई है और मोदी को भी अपने करिश्मे पर भरोसा नहीं रह गया है।
कुछ समय पहले ही संसद में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे अकेले ही सब पर भारी हैं। भाजपा के नेता उनको शेर बता कर विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का मजाक उड़ाते थे। शेर बनाम गीदड़ों की फौज का नैरेटिव बनाया जाता था। लेकिन अब तस्वीर उलट गई है।