आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में बुरी तरह हारी। लोकसभा में राज्य की 25 में से सिर्फ चार सीटें उसे मिली, जबकि पिछली बार उसने 22 सीटें जीती थी। विधानसभा की 175 में से सिर्फ 11 सीट जगन की पार्टी को मिली। इसी तरह ओडिशा में लोकसभा चुनाव में नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल का सफाया हो गया। पार्टी 21 में से एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकी। राज्य की 147 विधानसभा सीटों में उसे 51 सीटों पर जीत मिली। इस नतीजे के बाद दोनों का महत्व समाप्त हो गया। दोनों नेताओं ने अपने को भाजपा और कांग्रेस दोनों गठबंधऩों से दूर रखा था। लेकिन सबको पता है कि इनका समर्थन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ था। सभी अहम मौकों पर दोनों पार्टियों ने मोदी का साथ दिया था। अब ओडिशा में बीजद को हरा कर भाजपा ने सरकार बनाई है और आंध्र प्रदेश में उसका टीडीपी और जन सेना से गठबंधन है, जिसने जगन की पार्टी को हराया।
तभी ऐसा लग रहै कि केंद्र सरकार या नरेंद्र मोदी के लिए नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी की अब कोई जरुरत नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं है। भाजपा को दोनों की जरुरत बनी रहेगी। इसके दो कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि राज्यसभा में दोनों पार्टियों के सांसदों की अच्छी खासी संख्या है। जगन की पार्टी के तो 11 सांसद हैं उच्च सदन में। तभी उन्होंने कहा है कि दोनों सदनों में उनके 15 सांसद हैं और टीडीपी के 16 हैं। हालांकि यह अस्थायी स्थिति है, जो 2026 में बदल जाएगी। लेकिन तब तक जगन का क्या महत्व है यह उन्होंने भाजपा को बता दिया है। इसी तरह नवीन पटनायक के पास भी राज्यसभा में नौ सांसद हैं। यानी इन दोनों तटस्थ पार्टियों के 20 सांसद हैं। अगर उच्च सदन में किसी बिल पर शक्ति परीक्षण की जरुरत पड़ी तो उनकी मदद दरकार होगी। दूसरा कारण यह है कि लोकसभा मे जगन के चार सांसद हैं। अगर किसी समय चंद्रबाबू नायडू दबाव बनाते हैं तो जगन का समर्थन सरकार के काम आएगा।