भाजपा की सहयोगी पार्टियों के नेता इस बात से खुश हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बात करने का तरीका बदल गया है। अब वे बीजेपी या मोदी की सरकार नहीं कहते हैं, बल्कि एनडीए की सरकार कहते हैं। यह सही बात है कि 10 साल बाद पहली बार ऐसा हो रहा है प्रधानमंत्री अब बात बात में मोदी सरकार की बात नहीं कर रहे हैं या किसी भी मामले में खुद अपने नाम का डंका नहीं बजा रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि वास्तविक स्थिति में कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है। सब कुछ पहले की तरह चलता रहेगा। एनडीए के घटक दलों को सरकार में जगह दे दी गई। उनको जैसे तैसे मंत्रालय दे दिए गए हैं। अब इससे ज्यादा उनको उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।
जानकार सूत्रों का कहना है कि विपक्षी पार्टियों ने दबी जुबान में यह मांग उठाई थी कि पुराने एनडीए की तरह एक ढांचा बनाया जाए, जिसमें किसी सहयोगी पार्टी के नेता को संयोजक की जिम्मेदारी दी जाए। ध्यान रहे अटल बिहारी वाजपेयी के समय जॉर्ज फर्नांडीज और चंद्रबाबू नायडू एनडीए के संयोजक रहे थे। पिछले दो चुनावों में तो भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिल गया तो एनडीए का ढांचा बनाने की जरुरत नहीं पड़ी। इस बार जब भाजपा 240 सीट पर अटक गई तो सहयोगियों को लगा कि शायद इस बार भाजपा पर दबाव बनाया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी पहले की तरह की सरकार चला रहे हैं। यह एनडीए की नहीं, बल्कि भाजपा की ही सरकार दिख रही है।
पुराने एनडीए को पुनर्जीवित करने के अलावा सहयोगी पार्टियों की एक मांग यह भी थी कि सरकार चलाने का एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाय जाए। हालांकि यह भी किसी ने खुल कर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को नहीं कहा। लेकिन जानकार सूत्रों का कहना है कि सहयोगी पार्टियां ऐसा चाहती थीं। भाजपा इसके लिए भी तैयार नहीं है। उसकी ओर से साफ कर दिया गया है कि किसी तरह के साझा न्यूनतम कार्यक्रम की जरुरत नहीं है। सरकार पहले जैसे चल रही थी वैसे ही चलती रहेगी। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीर्ष मंत्रालयों में कोई बदलाव नहीं किया। लगभग सारे पुराने मंत्री रिपीट हुए और उनको उनका पुराना मंत्रालय मिला। इस तरह भी पार्टी ने साफ कर दिया है कि कुछ भी बदलने नहीं जा रहा है। न सरकार में कुछ बदलना है और न भाजपा और एनडीए के संगठन में कुछ बदलना है। नाम के लिए एनडीए रहेगा और जहां सहयोगी पार्टियों का असर है वहां राज्यों में उनके साथ गठबंधन होगा।