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मोदी का कहा राजनीतिक भूचाल किधर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान पश्चिम बंगाल की अपनी आखिरी सभा में कहा था कि नतीजों के बाद छह महीने में देश में बहुत बड़ा राजनीतिक भूचाल आएगा। उन्होंने दावा किया था कि परिवारवादी पार्टियां बिखर जाएंगी क्योंकि उनके कार्यकर्ता भी अब थक गए हैं। वे भी देख रहे हैं कि देश किधर जा रहा है और ये पार्टियां किधर जा रही हैं। सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का प्रचार बंद होने से एक दिन पहले कही गई प्रधानमंत्री की इस बात के बड़े मायने निकाले गए थे। यह माना जा रहा था कि चुनाव नतीजों में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करेगी और उसके बाद देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित तमाम प्रादेशिक पार्टियों में टूट फूट होगी। यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि कांग्रेस की स्थिति भी उद्धव ठाकरे की शिव सेना या शरद पवार की एनसीपी की तरह हो सकती है।

तभी अब सवाल है कि चुनाव नतीजे वैसे नहीं आए, जिसकी प्रधानमंत्री को उम्मीद थी या जिसकी भविष्यवाणी तमाम एक्जिट पोल में की गई थी। सो, छह महीने में राजनीतिक भूचाल आने वाली बात का क्या होगा? यह भी सवाल है कि आखिर प्रधानमंत्री किस तरह के भूचाल की संभावना जता रहे थे? क्या कांग्रेस और दूसरी प्रादेशिक पार्टियों को लेकर ऑपरेशन लोटस जैसी कोई योजना बनी थी? अगर ऐसी कोई योजना बनी थी तो अब उसका क्या होगा? योजना ठंडे बस्ते में चली जाएगी या अब भी किसी मुकाम पर उस पर अमल हो सकता है? इन सभी सवालों के जवाब छह महीने के अंदर निश्चित रूप से मिल जाएंगे।

असल में जिस उम्मीद में प्रधानमंत्री ने यह बात कही थी वह पूरी नहीं हुई। जिन पार्टियों को परिवारवादी बता कर उन्होंने निशाना बनाया था उन सभी पार्टियों ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। कांग्रेस 52 सीट से बढ़ कर 99 सीट पर पहुंच गई। समाजवादी पार्टी पांच से बढ़ कर 37 पर पहुंच गई। उसकी सीटों में सात गुने से ज्यादा इजाफा हुआ। उद्धव ठाकरे की पार्टी टूट गई थी और वे एक छोटे से धड़े के नेता थे, लेकिन उन्होंने नौ सीटें जीतीं। शरद पवार की पार्टी को आ, तेजस्वी यादव की पार्टी को चार, हेमंत सोरेन की पार्टी को तीन और एमके स्टालिन की पार्टी को 22 सीटें मिलीं। ममता बनर्जी की पार्टी 22 से बढ़ कर 29 पर पहुंच गई। इन नतीजों के बाद इन पार्टियों के अंदर भूचाल आने की संभावना लगभग खत्म हो गई है।

तो क्या रिवर्स राजनीतिक भूचाल आ सकता है? यानी भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के लिए आने वाले दिनों में चुनौती खड़ी हो सकती है? ध्यान रहे नतीजों के तुरंत बाद भाजपा और आरएसएस में घमासान छिड़ा दिख रहा है। खुद मोहन भागवत ने परोक्ष रूप से नरेंद्र मोदी को अहंकार नहीं करने, झूठ नहीं बोलने, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मन नहीं समझने आदि की नसीहत दी है। दूसरे नेताओं ने तो और खुल कर अपनी बात कही है। भाजपा की पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक की प्रदेश ईकाई में झगड़ा छिड़ा है। उधर महाराष्ट्र में अजित पवार और एकनाथ शिंदे की पार्टी में अंदरूनी घमासान शुरू हो गया है और दोनों पार्टियों के नेता वापस पुरानी पार्टी में लौटना चाहते हैं। कुछ सहयोगी मंत्री नहीं बनाए जाने या कम महत्व का मंत्रालय मिलने से अलग नाराज हैं।

By NI Political Desk

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