झारखंड को लेकर भाजपा की राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। अब तक भाजपा की योजना के तहत सिर्फ यह दिखाई दे रहा था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चौतरफा घेरा जा रहा है। केंद्रीय एजेंसियां उनके करीबियों पर कार्रवाई कर रही है और उनके व उनके परिवार के लोगों पर शिकंजा कस सकता है। पिछले दो साल से ज्यादा समय से रोज भाजपा के नेता हेमंत सरकार गिर जाने और मुख्यमंत्री के जेल जाने का नैरेटिव बनाए हुए थे। इस दौरान राजनीतिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप्प थीं। अब अचानक राजनीति तेज हो गई है और हेमंत सरकार के गिरने या मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी की चर्चाएं धीमी पड़ गई हैं।
पहले यह देखें कि पिछले तीन-चार महीने में भाजपा ने झारखंड को लेकर कितनी राजनीति की है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को हटा कर उनकी जगह बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। भाजपा में शामिल होने के बाद उनको विधायक दल का नेता बनाया गया था लेकिन तीन साल बाद तक उनको नेता विपक्ष का दर्जा नहीं मिल पाया। सो, उनके प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और उनके करीबी अमर बाउरी को विधायक दल का नेता बनाया गया। वे नेता प्रतिपक्ष भी हो गए। जेएमएम से भाजपा में गए जेपी पटेल को विधानसभा में पार्टी का सचेतक बनाया गया। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास को ओडिशा का राज्यपाल बना कर प्रदेश की राजनीति से दूर किया गया। इससे पहले छत्तीसगढ़ के रमेश बैस को हटा कर तमिलनाडु के राधाकृष्णन को राज्यपाल बनाया गया। इसके बाद से राजभवन और राज्य सरकार के बीच का टकराव कम हो गया है।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर रांची जाने वाले हैं। उस दिन से विकसित भारत संकल्प यात्रा की शुरुआत होगी। उससे पहले प्रधानमंत्री ने मन की बात के ताजा एपिसोड में बिरसा मुंडा को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री रांची की अपनी यात्रा में आगे की राजनीति का रोडमैप बताएंगे। अभी ऐसा लग रहा है कि भाजपा एक बार फिर आदिवासी राजनीति की ओर रूझान दिखा रही है। सबसे बड़े गैर आदिवासी और पिछड़ी जाति के नेता रघुबर दास को राज्य की राजनीति से दूर करने का एक बड़ा कारण यह दिख रहा है कि पार्टी गैर आदिवासी राजनीति की रणनीति छोड़ कर कुछ और दांव आजमाना चाहती है। असल में भाजपा को लग रहा है कि झारखंड में गैर आदिवासी राजनीति करने का उसेजो फायदा हुआ हो लेकिन पूरे देश में आदिवासी वोट का नुकसान हुआ है। अभी जिन राज्यों में चुनाव है उन पांचों राज्यों में आदिवासी वोट बड़ी संख्या में है। उसके लिए और आगे के लिए भी भाजपा आदिवासी, पिछड़ा और दलित राजनीति साधने की कोशिश कर रही है।