सहयोगी पार्टियों को एक-एक, दो-दो मंत्री पद देने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभागों के बंटवारे में भी सहयोगियों को झुनझुना थमा दिया है। कई सहयोगी पार्टियां बड़ी जीत के बाद उम्मीद कर रही थीं कि उन्हें अपने राज्य में विकास के काम करने का मौका मिलेगा और उनके नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने का भी मौका मिलेगा। लेकिन उनके विभागों को देखते हुए लग रहा है कि ऐसा कोई मौका उनको नहीं मिलने जा रहा है। प्रादेशिक पार्टियों की जीत से जो क्षेत्रीय आकांक्षाएं उफान मार रही थीं उन पर भी पानी फिर गया है।
बिहार में जनता दल यू के 12 सांसद जीते हैं और सरकार के गठन में जदयू का बड़ा योगदान है। लेकिन पहले तो उसे सिर्फ एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री का पद मिला। उसके बाद कैबिनेट मंत्री बने राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को पंचायती राज, मछली पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय मिला है। कहां तो उनकी पार्टी और बिहार के लोग रेल मंत्रालय मिलने की उम्मीद लगाए हुए थे। कहा जा रहा था कि रेल नहीं तो ऊर्जा, इस्पात, ग्रामीण विकास या स्वास्थ्य मंत्रालय मिलेगा। लेकिन उनको ऐसा मंत्रालय मिला है, जिसमें उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। चिराग पासवान के पांच सांसद हैं और सरकार की स्थिरता में उनका बड़ा योगदान होना है लेकिन उनको वही खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय मिला है, जो उनके चाचा पशुपति पारस को पिछली सरकार में मिला था।
इसी तरह चंद्रबाबू नायडू के बारे में कहा जा रहा था कि उनके पास 16 सांसद हैं और वे मनचाहा मंत्रालय लेंगे। वे तो स्पीकर के पद पर भी दावा कर रहे थे। लेकिन स्पीकर का पद तो छोड़िए उनको भी जदयू की तरह एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री का पद मिला। फिर कहा जा रहा था कि वे बुनियादी ढांचे से जुड़ा कोई मंत्रालय लेंगे, जिसका बजट बढ़ा होगा। शहरी विकास, सड़क परिवहन आदि की बात हो रही थी लेकिन मिला नागरिक विमानन मंत्रालय, जिसमें सरकार के हाथ में अब कुछ भी नहीं है। एक सरकारी विमान सेवा थी वह भी बिक चुकी है। ज्यादातर हवाईअड्डे अडानी समूह के हाथ में चले गए तो टीडीपी के मंत्री राममोहन रेड्डी क्या करेंगे यह देखने वाली चीज होगी।