हरियाणा में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ है वह भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से तालमेल टूटना, मुख्यमंत्री का इस्तीफा और नए मुख्यमंत्री का चुनाव आदि सब कुछ भाजपा के हिसाब से हुआ। इसके दो मकसद हैं। राजनीतिक मकसद तो यह है कि दुष्यंत चौटाला को गठबंधन से बाहर करना है ताकि वे अकेले चुनाव लड़ें और कांग्रेस के जाट वोट को नुकसान पहुंचाएं। दूसरा मकसद सुप्रीम कोर्ट की गतिविधियों से ध्यान भटकाना है।
इसके लिए मंगलवार का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की डिटेल जमा करने के लिए मंगलवार शाम तक का समय दिया था। सोमवार को जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो उससे ध्यान हटाने के लिए संशोधित नागरिक कानून यानी सीएए की अधिसूचना जारी हुई। जब उससे काम नहीं चला तो हरियाणा का घटनाक्रम पिछले कुछ समय से अवश्यंभावी बताया जा रहा था उस पर अमल कर दिया गया।
भाजपा का बड़ा राजनीतिक मकसद यह है कि वह चुनाव को पूरी तरह से जाट बनाम गैर जाट बनाना चाहती है। मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने जब यह राजनीति शुरू की थी तब से 10 साल में बहुत सी चीजें बदल गईं। अब जाट राजनीति पूरी तरह से कांग्रेस के ईर्द गिर्द घूम रही है। इससे भूपेंद्र सिंह हुड्डा बहुत मजबूत हुए हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने ही उनकी जीत का रथ रोका था अन्यथा पिछली बार ही कांग्रेस बहुमत हासिल कर लेती। अगर दुष्यंत चौटाला भाजपा के साथ रहते तो उन पर भी जाट समुदाय के साथ धोखा करने का आरोप लगता रहता और भाजपा के साथ साथ उनको भी जाट वोट नहीं मिलता। लेकिन अलग होने के बाद वे भाजपा को अटैक करके कुछ वोट हासिल कर सकते हैं। भाजपा का मकसद त्रिकोणात्मक मुकाबला बनाना था।
खट्टर को बदलने का फैसला भी राजनीतिक है क्योंकि वे इकलौते मुख्यमंत्री हैं, जिनको नरेंद्र मोदी के राज में किसी प्रदेश में 10 साल के राज का मौका मिला है। अगर 2027 तक रहते हैं तो योगी आदित्यनाथ दूसरे होंगे।
बहरहाल, 10 साल के राज की एंटी इन्कंबैंसी लोकसभा नतीजों पर न पड़े इसलिए खट्टर को हटाना ही था। पहले ही खुद खट्टर ने कहना शुरू कर दिया था कि वे दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे।